Sunday, June 30, 2024

बृज 84 कोश यात्रा दिवस 27

"आज के विचार"
*बृज चौरासी यात्रा*
*भाग - 27*
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 *(जब कृष्ण ने "रामलीला" देखी...)*

*प्रिय ! जय जय सुर नायक...* 
*(श्री तुलसीदास जी)*

*मित्रों ! !! सियावर राम चन्द्र की जय !!*

*पता नही क्यों हमारी बृज चौरासी कोस की यात्रा बरसाने से होती हुयी नन्दगाँव, फिर आगे "चमेली वन" नामक स्थान में जैसे ही गयी...*

*श्री हनुमान जी का वह दिव्य विग्रह देखकर... और उनके पास भगवान श्री राम श्री किशोरी जी के दर्शन करके... एकाएक मेरे मुँह से ये जय जयकार का उच्चारण हो गया था ।* 

*"सियावर रामचन्द्र की जय"*

*पर यहाँ चमेली वन में कृष्ण का कोई विग्रह नहीं ?*
*...यहाँ की लीला क्या है पुरोहित जी ?* 
*मैंने सहज जिज्ञासा की थी ।* 

*मेरे पुरोहित जी मुझ से बोले... नन्दगाँव से आगे ये चमेलीवन पड़ता है ।*
*महाराज ! आप भाग्यशाली हैं... कि आज के दिन ही… शारदीय नवरात्रि में नवमी और दशमी के दिन यहाँ राम लीला हुई थी... और उस रामलीला के आयोजक स्वयं नन्द बाबा और उनका समाज ही था...तो कन्हैया को तो आना ही था ।*

*(साधकों ! मैं जो घटना लिखता हूँ... वो अपनी तरफ से पूरा प्रयास करता हूँ कि आपको प्रमाणिक बातें ही बताऊँ)*

*मैं कितना गदगद् हो गया था आपको मैं बता नही सकता !*

*मैंने पुरोहित जी का हाथ पकड़ा वहीं पास में हनुमान कुण्ड था, उसी कुण्ड की सीढ़ियों में लेकर गया... वहाँ हम दोनों बैठे ।*

*मैंने आनंदित होते हुये कहा... इस चमेली वन की ये कथा मुझे सुननी है ।* 

*पुरोहित जी ने कहा... आह ! आपके अहोभाग्य हैं कि जब राम लीला का आयोजन यहाँ हुआ था वो शुभ दिन आज का ही था ।*
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*पूरा नन्दगाँव आज आनन्दित है... रामलीला का आयोजन नन्द बाबा के द्वारा चमेली वन में… जहाँ चमेली के फूलों के जंगल थे... वहाँ का वातावरण चमेली की खुशबू से सराबोर रहता था ।*

*यशोदा ! समय हो रहा है...अभी तक तुमने कन्हैया को तैयार नही किया... रामलीला देखने जाना है ।*

*बस अभी तैयार ही कर रही थी... बस कुछ समय और ।*

*जल्दी करो... यशोदा !* 
*इतना बोल कर नन्द बाबा चले गये थे ।* 

*पूरा नन्द गाँव आज जा रहा है "चमेली वन" दशहरा जो है ।*

*पीले वस्त्र नन्हे कन्हैया को पहनाये...*

*घुंघराले बालों को बाँध दिया... उसमें मोर का पंख सलीके से लगाया... गूंजा की माला… सुंदर पीताम्बरी ।* 

*सजाकर अपने लाला को... थोड़ी दूर गयीं यशोदा और अपने कन्हैया को देखने लगीं ।* 

*फिर याद आया... ओह ! काजल का टीका नही लगाया मैंने ।*

*अपने ही आँखों के काजल को ऊँगली से निकाल कर अपने लाला के माथे में लगा दिया था ।* 

*और चूम लिया... ।*

*कहाँ जा रहे हैं मैया हम लोग ?* 
*कन्हैया ने पूछ लिया ।*

*कन्हैया ! हम लोग राम लीला देखने जा रहे हैं ।* 

*वहाँ क्या होगा ?* 

*भगवान राम की लीला होगी ।* 
*ये कहते हुये चल दी थीं मैया ।* 

*रोहिणी चलो... कहाँ है बलदाऊ ?* 

*आ रहा है...* 
*बलराम भी आ गये... सज-धज के ।* 

*आज दशहरा जो है... दोनों ने अच्छे-अच्छे वस्त्र पहने हुये थे ।*

*दो सुंदर बलिष्ठ बैल सजे हुये गाड़ी में लगे थे… पीले वस्त्रों से उस गाड़ी को सजाया गया था ।*

*उस गाड़ी में यशोदा और रोहिणी... और उनके लाड़ले कृष्ण और बलराम बैठे थे... पर कन्हैया ने ज़िद्द करके मनसुख को भी अपने साथ बिठा लिया था ।*

*बैल गाड़ी चल पड़ी थी...*

*मैया देखो ना ! ये कन्हैया बैलों को छेड़ रहा है...*
*गाड़ी चलाने वाले ग्वाले ने शिकायत कर दी थी मैया से ।* 

*कृष्ण मारूँगी ! क्यों छेड़ रहे हो बैलों को… अभी गाड़ी पलट जायेगी । यशोदा ने डाँट दिया ।*

*मैया मैं नही छेड़ रहा… दाऊ छेड़ रहे हैं ।* 

*बलराम क्यों छेड़ रहो हो पुत्र !*

*नही मैया मैं नही छेड़ रहा इन बैलों को... ये कन्हैया ही मुझ से कह रहा था... दाऊ ! एक बैल को तू छेड़ एक को मैं छेड़ता हूँ... मज़ा आएगा ।* 

*रोहिणी और यशोदा ख़ूब हँसी... अब आ गया था… राम लीला का क्षेत्र चमेली वन...*

 *आह !*

*चमेली के फूलों की खुशबु से नहा रहा था ये क्षेत्र । रामलीला शुरू हुयी ।*
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*भगवान श्री राम का जन्म, फिर विश्वामित्र के साथ यज्ञ की रक्षा करने के लिए जाना... पर मार्ग में एक राक्षसी मिल गयी ताड़का ।*

*मैया ये कौन है ! काली काली... भयानक ।*

*पुत्र ! ये राक्षसी है ।*

*राक्षसी कौन होती है ?* 

*अब क्या बताये मैया ! देख... यही होती है ।*

*जनकपुर में धनुष तोड़ दिया… कन्हैया ने खुश होकर ताली बजाई ।*

*फिर श्रीसीता राम जी का विवाह ।*

*फिर तो वनवास का दुखद प्रसङ्ग ही था... ।* 

*वनवास में सूर्पनखा मिली ।* 

*ये अब कौन है मैया !* 
*कन्हैया ने फिर पूछा ।*

*लाला... ये भी राक्षसी है ।*

*क्यों आयी है ?* 

*भगवान श्रीराम जी की जो पत्नी हैं ना... श्रीजानकी जी... उनको खाने के लिए... । मैया ने सहजता में कह दिया था ।*

*और खाने के लिए दौड़ी सूर्पनखा... मैं इस राम की पत्नी को खाऊँगी... तब तो तुम मेरे बनोगे राम !* 

*खाने के लिए जैसे ही दौड़ी... लक्ष्मण जी ने नाक कान काट दिए ।*

*कन्हैया बहुत खुश हुये... "ठीक किया लक्ष्मण ने" ये कहते हुये अपने भाई बलराम की ओर देखा*
*था कन्हैया ने ।* 

*रावण आया... हा हा हा हा... ।*

*मैया ये कौन है ?* 

*ये राक्षस है... और उस सूर्पनखा का भाई है ।* 

*राम तो गये मारीच के पीछे जो हिरण बना हुआ था ।* 

*लक्ष्मण को भी बाद में जाना ही पड़ा ।* 

*रावण आया... अकेली कुटिया में श्रीसीता जी ।*

*साधू का वेष बनाकर आया था... भिक्षा देने के लिए जैसे ही श्री सिया जू बाहर आयीं…*
 *रावण,* 
*दसानन रावण । हा हा हा हा हा हा ।*

*चुरा कर ले गया ।... हे राम हे राम हे राम !*
*पुकार लगाई श्री सीता जी ने ।* 

*एकाएक कन्हैया खड़े हो गये... लाल मुखारविंद हो गया था ..आवेश में आ गये थे... और जोर से चिल्लाकर बोले... लक्ष्मण ! मेरा धनुष बाण कहाँ है !* 

*लाओ !* 

*अभी रावण को मारता हूँ... मेरी सीता को चुराने की हिम्मत कैसे हुयी ।* 

*मैया डर गयी... लाला ! कन्हैया ! क्या हुआ ?* 

*बोल ना तुझे क्या हुआ ?* 

*तभी एकाएक बन्दरों का झुण्ड आ गया... हजारों बन्दर ।*

*मैया कुछ समझ पातीं कि...* 

*श्री हनुमान जी महाराज प्रकट हो गये... और नन्हें से कन्हैया को उठाकर ले गये ।*
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*पास के सरोवर में ले जाकर कन्हैया को विराजमान किया ।*

*श्री हनुमान जी ! चरणों में गिर गये थे… कन्हैया के ।*

*मेरे राम ! हे मेरे नाथ ! मुझे इस अवतार में सेवा करने का अवसर आपने नही दिया... मैं दुःखी हूँ... ऐसा मत कीजिये !* 

*मैं तो आपका ही दास हूँ ना !*

*नेत्रों से अश्रुओं की बरसात हो गयी थी पवनसुत के ।*

*वृन्दावन में जाओ... मैं अब वहीं जाने वाला हूँ… वहाँ वन है... वहीं हम लोग मिलेंगे… जाओ पवनसुत ।*

*चरण धोये थे... पवन सुत ने... और उस चरणामृत को पीया... अपने माथे में लगाया... और कन्हैया को लेकर... चल पड़े मैया के पास ।*
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*पूरे चमेली वन में पागलों की तरह दौड़ रही थी मैया यशोदा...इतने बन्दर आ गये है...कहाँ गया मेरा कन्हैया... पूरा समाज खोजने में लग गया था कन्हैया को... ।*

*तभी हनुमान जी महाराज आकाश मार्ग से आते हुये दिखे... कन्हैया को गोद में लेकर ।*

*सब लोग देख रहे हैं... आकाश की ओर...*

*मैया तो मूर्छित ही हो गयी थी ।* 

*कन्हैया को वहीं, मैया के पास रखकर... एक बार फिर चरण वन्दन करके... श्री हनुमान जी चले गये ।* 

*नन्द बाबा आये ।...यशोदा देखो !... हमारा कन्हैया आ गया है ।*

*आँखें खोलो !... और जैसे ही कन्हैया को देखा मैया ने... अपनी छाती से लिपटा लिया था अपने लाल को ।* 
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*मैं आनंदित होकर अपनी यात्रा के पुरोहित जी से ये कथा सुन रहा था...मुझे रोमांच हो रहा था ।*

*मैंने कहा... फिर क्या हुआ ?* 

*राम लीला तो पूर्ण हो गयी । रावण मर गया ।* 

*पर नन्द बाबा ने कहा... जिस बन्दर ने मेरे लाला की रक्षा की... यहाँ पर उस बन्दर का मन्दिर बनेगा ।*

*ये हनुमान जी ही तो थे ।* 
*ये कहना था कृष्ण के पिता नन्द बाबा का ।* 

*और भव्य हनुमान जी का मन्दिर स्वयं नन्द बाबा ने चमेली वन में बनाया ।*
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*साधकों ! कभी अगर बृज भूमि में आप लोगों का आना हो तो चमेली वन...जो नन्द गाँव के पास में ही है... यहाँ जरूर आयें... ऐसा दिव्य श्री हनुमान जी का विग्रह मैंने आज तक नही देखा था...मुझे अनुभव हुआ है... इसीलिए बता रहा हूँ... ।*

*आज ये हनुमान चालीसा के शब्द कितने स्पष्ट मुझे अनुभव में आ रहे थे ।*
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*"चारों जुग परताप तुम्हारा"*


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सखि नामावली