(((( प्रेम सरोवर - बरसाना ))))
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एक बार श्री कृष्ण और राधा रानी एक साथ बैठे हुए थे। एक मधुमक्खी राधा रानी के पास भिनभिना रही थी। कृष्ण ने मित्र को इसे दूर करने के लिए कहा।
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जब मित्र मधुमक्खी को दूर करके लौट आया, तो उसने कहा, "मधु चला गया है"।
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यहाँ मधु का मतलब मधुमक्खी है और मधु कृष्ण का नाम भी है। राधा रानी को लगा की कृष्ण दूर चले गए और उन्होंने रोना शुरू कर दिया।
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राधा रानी बार-बार रोने लगी, "ओह, प्राण-नाथ, तुम कहाँ गए हो? वह महाभाव में थी कि वह यह नहीं पहचान सकी कि कृष्ण उनके साथ बैठे है।
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कृष्ण ने उसे सांत्वना देने की कोशिश कि लेकिन राधा रानी की अलगाव का रोना देखकर, कृष्ण भी भूल गए कि वह उनकी गोद में बैठी थी और उन्होंने रोना शुरू कर दिया और प्रेम के आंसुओं के मिश्रण से प्रेम सरोवर उभरा।
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जब साखियों ने उनकी हालत देखी तो वे भी भूल गई। राधा रानी की महिला तोता ने राधा के नाम का ज़ोरदार उच्चारण करना शुरू कर दिया और पुरुष तोते ने श्रीकृष्ण के नाम का ज़ोरदार उच्चारण करना शुरू किया।
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जैसे ही उन्होंने एक-दूसरे के नाम को सुना राधा और कृष्ण ने बाहरी चेतना वापस ली और एक दूसरे पर बहुत उत्सुकता से देखा।
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प्रेम सरोवर दोनों युगल के विरह के आंसुओं एवं अश्रु धार से उभरा हालांकि वे एक साथ ही थे उस समय।
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"प्रेम सरोवर प्रेम की भरी रहे दिन रैन,
जहाँ जहाँ प्यारी पग धरत श्याम धरत तहँ नैन"
श्री कुंभन दास
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ब्रज में प्रेम-सरोवर नित्य दिव्य प्रेम से भरा हुआ है। प्यारी राधा जहाँ कमल चरण रखती हैं, श्री कृष्ण अपनी आंखों में चरण कमल के दर्शन करना चाहते हैं, इसलिए उनके नयन उनके चरणों से अंकित रज की तरफ रहती है।
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प्रेम सरोवर प्रेम सों पूरन परम रसाल।
नेंकु नीर के परसितें वसें हिये जुग लाल॥
श्री प्रियादास जी, रसिक मोहिनी (25)
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बरसाना में स्थित प्रेम सरोवर प्रेम से परिपूर्ण है जो परम रसाल है जहां श्री राधा कृष्ण ने प्रेम से आँसु बहाए थे, उस सरोवर के नीर (आंसुओं) के थोड़े से स्पर्श से (यदि भाव से किया जाये) प्रिया लाल ह्रदय में बस जाते हैं।
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