सखी बिसाखा अति ही प्यारी। कबहुँ न होत संगते न्यारी॥
बहु विधि रंग बसन जो भावै। हित सौं चुनि कै लै पहिरावै॥
ज्यौं छाया ऐसे संग रहही। हित की बात कुँवरि सौं कहही॥
दामिनि सत दुति देह की, अधिक प्रिया सों हेत।
तारा मंडल से बसन, पहिरे अति सुख देत॥
माधवी मालती कुञ्जरी, हरनी चपला नैन।
गंध रेखा सुभ आनना, सौरभी कहैं मृदु बैन॥[6]