श्रीहित चौरासी” !!
( प्रीति की अटपटी रीति -“प्यारे बोली भामिनी” )
20, 5, 2023
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गतांक से आगे -
प्रीत की रीत ही अटपटी है ...इसकी चाल टेढ़ी है ....ये सीधी चाल चल नही सकती ।
प्रियतम कब रूठ जाये पता नही ...किस बात पर रूठ जाये ये भी पता नही ...और प्रिय रूठे भी नही किन्तु प्रेमी को लगे की वो रूठा है ....अजी ! कुछ समझ में नही आता इस प्रेम मार्ग में तो ।
तो प्रेम में समझना कहाँ है ! इसमें तो डूबना है ....ना , डूबने पर हाथ पैर मारना निषेध है ...अपना कुछ भी प्रयास न करना ....बस डूब ही जाना । और जो डूबा वही पार है ...जिसने हाथ पैर मारे वो तो अभी प्रेम विद्यालय में ही नही आया है । प्रेम में तो ये हो - कल नही सुना ? - “जोई जोई प्यारो करैं, सोई मोहि भावैं” ....यही है वो विलक्षण प्रेम .....
पागल बाबा का आज स्वास्थ्य ठीक नही है ..हमें तो लगा कि ये बोल भी नही पायेंगे ...पर आज हम सबके सामने वो विराजे ..श्रीजी महल की प्रसादी भी ग्रहण की , प्रसादी माला श्रीजी मन्दिर के गोस्वामियों ने आकर धारण कराया। आह ! बाबा रस सिक्त हैं ...ये रस में ही डूबे हुए हैं ।
श्रीहित चौरासी जी पर बोल रहे हैं बाबा ...”प्रेम में वियोग को आवश्यक माना है समस्त प्रेम के आलोचकों ने ...वियोग से प्रेम पुष्ट होता है ....ये सर्वमान्य सा सिद्धांत दिया है ...मनोविज्ञान भी कहता है ...प्रियतम के साथ निकटता कुछ ज़्यादा हो जाये तो ...और बनी रहे तो प्रेम घटता जाता है ...और वियोग प्राप्त हो जाये तो प्रेम बढ़ता है । पर ये सिद्धांत “श्रीवृन्दावन रस” में लागू नही है ...यहाँ तो मिले ही हुए हैं ....और मिले रहने के बाद भी लगता है कि अभी मिले ही कहाँ ? ये बैचेनी कहाँ देखने को मिलती है बताओ ? संयोग में ही वियोग ....ये विलक्षण रस रीति कहाँ मिलती है ? मिले हैं ...अपनी कमल नाल की तरह सुरभित भुजाओं को प्रिया ने अपने प्रियतम के कन्धे में रख दिया है ..और आनन्द सिन्धु में डूब गयीं हैं ...तभी उन्हें ऐसा लगता है कि ये दूरी भी असह्य है ...हृदय से लग जाती हैं ...दोनों एक होने की चाह में तड़फ उठते हैं ...ये विलक्षणता है इस प्रेम में ....फिर यहाँ एक “हित तत्व” है ...जो प्रेम का ही एक रूप है ...वो इन दोनों के मध्य है ...वो सखी भाव से इनके भीतर चाह को प्रकट करने का कार्य करती है ....फिर दोनों एक होना चाहते हैं ...पर मध्य में सखी ( हित तत्व ) है वो एक होने नही देती ..क्यों की ‘दो’ ‘एक’ हो गये तो लीला आगे बढ़ेगी नही ...पर इतना ही नही ....जब दोनों दूर होते हैं तब ‘एक’ करने का प्रयास ये सखी ही करती है ...तो यहाँ संयोग वियोग दोनों चलते हैं ....यही प्रीत की अटपटी रीति है ....पागल बाबा मुस्कुराकर गौरांगी की ओर देखते हैं ...वो तो वीणा लेकर तैयार ही बैठी थी ...आज श्रीहित चौरासी जी के दूसरे पद का गान होगा ..और गौरांगी गा उठती है अपने मधुर कण्ठ से -
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देखो ! प्यारे बहुत दुखी हो गये हैं ....वो आकुल हैं ...वो बारम्बार बाहर देख रहे हैं ....आप कैसे मानोगी ये सोच रहे हैं ....वो आपको मनाने आते पर डर रहे हैं ....कि कहीं उस मनाने की बात से भी आप बुरा न मान जाओ ! हित सखी बड़े प्रेम से कहती हैं ....देखो प्यारी जू ! कितनी सुंदर रात्रि ( जामिनी ) है ....इस रात्रि में आप कहाँ अकेली बैठी हो ? जाओ , मिलो उनसे ....आप आकाश में चमकने वाली बिजली हो और वो श्याम घन ....आप ऐसे मिलो ..जैसे बिजली बादल से मिलती है और अपने आपको उसी में खो देती है ....आप भी खो जाओ ।
श्रीजी अभी भी नही उठीं ....न कोई हलचल उन्होंने की ....तो सखी फिर बोली -
आप मान कर रही हो ? वो भी रसिकों के राजा से ? नही ...उनसे मान मत करो ....वो प्रेम, रति, सुरति और प्रीति सबके जानकर हैं ...उनसे मान करे ऐसी कौन है इस जगत में ? आप जाओ उनके पास । ऐसे सुन्दर अवसर को मत गुमाओ । हित सखी के मुख से ये सुनते ही श्रीराधा जी फिर बोलीं ...पर हुआ क्या ? सखी बोली ...आप मान मत करो । “मान” ? सखी ! क्या प्यारे ने भी ये सोचा है कि मैं उनसे मान कर रही हूँ ? हाँ ....हित सखी ने जब कहा ...तब तो श्रीराधा रानी उठीं .....और दौड़ पड़ीं निकुँज की ओर ....उनकी चूनर यमुना में भींगी थी उनमे से जल गिर रहा था ...नूपुर की झंकार से निकुँज झंकृत हो गया था वो दौड़ रही थीं .....उन्हें तो मान ही नही हुआ था ...ये रूठी ही नहीं थीं ।
जब देखा मेरी प्रिया इधर आरही हैं ...तो श्याम सुन्दर आनंदित हो उठे ...वो सब कुछ भूल गये ..उन्हें तो सर्वस्व मिल गया । श्रीराधा उन्मत्त की भाँति दौड़ी जाती हैं और अपने प्रियतम को बाहु पाश में भर लेती हैं ...और धीरे धीरे दामिनी श्याम घन में खो जाती है ।
******जय जय श्रीराधे , जय जय श्री राधे , जय जय श्रीराधे********
दोनों हाथों को ऊपर करके बाबा रस समुद्र में डूबने की घोषणा करते हैं ।
बाबा इसके मौन हो गये ...उनके नेत्रों के कोर से अश्रु बह रहे थे ..फिर श्रीहित चौरासी जी के दूसरे इसी पद का गान होता है ..सब गौरांगी के साथ फिर गाते हैं । बाबा भाव राज्य में जा चुके हैं ।
“प्यारे बोली भामिनी , आजु नीकी जामिनी” ।
आगे की चर्चा अब कल -
हरि शरणम् गाछामि
✍🏼श्रीजी मंजरी दास (श्याम प्रिया दास)
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