Tuesday, June 2, 2020

श्री राधा सुधा निधि

और देस के बसत ही, अधिक भजन जो होय।
इहि सम नहिं पूजत तऊ, वृन्दावन रहै सोय।।52।।
अन्य देशों में निवास करते हुए चाहे विशाल भजन होता हो परन्तु
वह वृंदावन में सोते रहने के समान भी नहीं है।

निकुंज लीला 1

निकुञ्ज का एकान्त कक्ष। श्रीप्रियाजी मखमली सिंहासन पर अकेली बैठी हैं। उन्होंने धीरे से पुकारा- चित्रा! अपना नाम सुनते ही श्रीचित...