Friday, July 4, 2025

चकित चकवा मानसिक रूप-लीला चिंतन

चकित चकवा
राधा राधा राधा राधा राधा राधा राधा राधा राधा राधा.....

श्रीयुगल रसिकों के रास-विहार के दर्शन में विमुग्ध-विलुब्ध चकवे को पता ही नहीं चला कि मध्य रात्रि की बेला हो गयी। निशान्त बेला के उपरान्त श्रीयुगल रसिकों के सहनृत्य का शुभारम्भ हुआ था। नृत्य की अद्भुत गति ने सभी को विमोहित कर रखा था। किसी को भी समयका भान नहीं था। अपने अस्तित्व को भूले हुए सभी तादात्म्यभाव में निमग्न थे।

भाव के किञ्चित् शमित होने पर चकवे ने देखा कि मैं अपनी चकवी के पास वृक्ष की शाखा पर बैठा हुआ हूँ और मेरी चकवी मेरे पार्श्व में बैठी रास-विहार को देख रही है। चकवे को विस्मय हो रहा था कि रात हो गयी है, इसके बाद भी मेरी चकवी मेरे समीप है। विधाता के विधान के अनुसार इसे अलग हो जाना चाहिये था। विधाता को मैं सदा ही कोसता रहता हूँ कि उसने यह क्या विधान बनाया कि चकवी रातभर के लिये चकवे से अलग हो जाया करती है। प्रिय का विलग हो जाना कितना प्रपीड़ित करता है, यह वह विधाता क्या जाने? घायल ही घायल के मर्म को जान पाता है। आज विधाता के विधान में यह अपवाद कैसे हो गया?

चकवा अपने अन्तर के विस्मय को छिपा नहीं पाया। वह समीप बैठी अपनी चकवी से पूछ बैठा- आज यह कैसे सम्भव हो गया कि सूर्यास्त के बाद चकवी-चकवा का जो पारस्परिक बिलगाव हुआ करता है, वह इस समय नहीं हुआ? अब तो आधी रात होने को आयी और तुम तब से अब तक सतत मेरे पास हो। यह कैसे हो गया?

चकवी ने अनुमान लगा लिया कि इसे अभी श्रीप्रिया-प्रियतम के रसराज्य के अनोखेपन का परिज्ञान नहीं है। चकवी ने बतलाना आरम्भ किया- वह देखो, श्रीयमुनाजी के मन्थर प्रवाह की ओर। तट के समीप कितने कमल खिले हुए हैं! कमल भी अनेक रंग के हैं। क्या रात को कमल खिलते हैं? सूर्यास्त होते ही इन कमलों को सम्पुटित हो जाना चाहिये था, परन्तु रास-विहार की दिव्य लीला के अनुरूप आकर्षक वातावरण के निर्माण के लिये ये कमल तनिक भी संकुचित या सम्पुटित नहीं हुए, अपितु पूर्ण रूप से विकसित हैं। यहाँ क्या विधाता के विधान का किसी भी रूप में कोई अनुशासन है? सत्य तो यह है कि वह विधाता और उसका वह विधान ही यहाँ के अनुशासन से अनुशासित रहता है, सदा संकुचित रहता है। उस विधि-विधान का इस लीला-राज्य में प्रवेश ही नहीं। दिव्य लीला के रसोत्कर्ष में जो भी आवश्यक होगा, वह सब यहाँ होगा और देखो, जिस वृक्ष पर हम दोनों बैठे हैं, उस वृक्ष के मूलभाग की ओर देखो।

चकवी के कहने पर वह चकवा, जो श्रीयमुनाजी में विकसित कमलों को साश्चर्य देख रहा था, उस चकित चकवे ने पुनः साश्चर्य देखा कि वृक्ष के मूलभाग में एक बड़े सर्प के फैले फण पर एक मेढक बैठा है। मेढक को सर्प के फण पर बैठे हुए देखकर चकवा चकित स्वर में बोल पड़ा- मेढक तो सर्प का भोजन है। भक्ष्य मेढक से सर्प को इतना प्यार?

चकवी ने फिर समझाना आरम्भ किया- विधाता की त्रिगुणात्मक सृष्टि में मेढक सर्प का भक्ष्य हो सकता है, परन्तु श्रीप्रिया-प्रियतम के इस त्रिगुणातीत प्रेम-राज्य में वह मेढक भी सर्प के द्वारा लाल्य है। मेढक को सर्प ने अपने फण पर इसलिये बैठा रखा है कि वह ऊँचे बैठकर भली प्रकार से रास-विहार का दर्शन कर सके। तुम यह मान लो, पूर्णतः मान लो कि ब्रह्मा की जड़-चेतनात्मक, गुण-दोषमय सृष्टि के संचालन संतुलन के लिये विधि-निषेध के विविध नियम ब्राह्मी सृष्टि का नियमन नियंत्रण भले करते रहें, परन्तु श्रीप्रिया-प्रियतम का नित्य निर्विकार और नितान्त निर्मल निकुञ्ज राज्य उन विविध नियमों की नियमन परिधि से सर्वथा परे है। यहाँ निकुञ्ज-राज्य में वही होगा, जो प्रीति का पोषक हो, जो परसुख प्रदायक हो और जो श्रीप्रिया-प्रियतम की रस-रीति के उत्कर्ष में सहायक हो। तभी तो तुम मेरे पास हो, मैं तुम्हारे पास हूँ, तभी रात में भी कमल विकसित होते हैं और सर्प भी मेढक से प्रीति रखता है।

विस्मय में डूबा चकवा सिहर-सिहरकर बोल उठा श्रीप्रिया-प्रियतम के इस अनोखे रस-राज्य की जय हो, सदा जय हो, इसकी बार-बार बलिहारी

🙏🙏 राधे श्याम जी 🙏🙏
हमारे साथ जुड़ने हेतु केवल whatsapp  +919711592529 करे और हमारे youtube channel को subscribe करे https://www.youtube.com/@brajrasmadira 

Google search :-  www.brajbhav.blogspot.com

गो प्रेम गौ के श्याम 1

         **********************************          ━❀꧁ हरे कृष्ण ꧂❀━  🍂🌱🍂🌱🍂🌱🍂🌱🍂       *"कृष्ण का गऊ प्रेम”*   🍂🌱🍂🌱🍂🌱🍂...