घनश्याम और श्याम घन
राधा राधा राधा राधा राधा राधा राधा राधा राधा राधा.....
सावन मास की लुभावनी रात। अभी मध्य रात्रि में पर्याप्त देर है । निकुञ्ज-भवन के बरामदे में मखमली बिछावन बिछा हुआ है। बरामदे के सामने प्रकृति का उन्मुक्त प्रांगण है। मखमली बिछावन पर श्रीप्रिया-प्रियतम विराज रहे हैं। अपने प्रियतम को रिझाने के लिये श्रीप्रियाजी आलाप कर रही हैं। आस पास बैठी हुई सखियाँ-मञ्जरियाँ-सहचरियाँ भी श्रीप्रियाजी की आलापचारी को उत्कण्ठापूर्वक सुन-सुनकर विभोर हो रही हैं। अमावास्या की तिथि होने से सर्वत्र अँधेरा है। इस अँधेरे का भी एक आकर्षण हैं। इसके कजरारेपन में भी एक सलोनापन है। श्रीप्रियाजी हैं ही श्याम-प्रेमिका। श्रीप्रियाजी की रुचि को देखकर ही अति मन्द प्रकाश का विकास करने वाले मणि-दीपक प्रज्वलित किये गये हैं।
आकाश में श्याम मेघ छाये हुए हैं। बस, वे छाये हैं, परन्तु बरस नहीं रहे हैं। सावन मास की अँधेरी रात के समय कजरारे बादलों को देखकर श्रीप्रियाजी ने मल्हार राग की रागिनी छेड़ दी। समीपस्थ श्रीललिताजी वीणा पर स्वर दे रही हैं। श्रीप्रियतम भी सुर में सुर मिलाते हुए वंशी-वादन कर रहे हैं।
सारे वातावरण में राग-रंग छाया हुआ है। राग की रागिनी से सभी का मन तरंगित है। श्रीप्रियतम का मन भी तरंगित है, परन्तु इस तरंग के साथ ही उनके मन में एक कसक भी है। श्रीप्रियतम के मन में घनी कसक है कि श्रीप्रियाजी की मुखछवि का दर्शन नहीं हो पा रहा है। एक तो सावन की अमावास्या वाली अँधियारी और फिर मणि दीपक का प्रकाश भी अति मन्द।
सभी आनन्द में निमग्न हैं, विभोर हैं। श्रीप्रियाजी उमंग में भरकर गायें और फिर आनन्द उमड़ न पड़े, यह भला कैसे हो सकता है? आनन्द का सागर उमड़ रहा है, उफन रहा है और उस सागर की लहरों पर सभी लहरा रहे हैं। बस, थोड़ी-सी कसर है। वह कसर है कसक के रूप में, जो व्याप्त हो रही है प्रियतम श्रीश्यामसुन्दर के अन्तर में।
इन घनश्याम के अन्तर की चुभती कसक संक्रमित हो गयी उन नभचारी श्यामघन के अन्तर में और तभी घने श्यामल मेघों के मध्य बिजली कौंधी। विद्युल्लता के चमकते ही प्रकाश में चमक उठी भावलतिका श्रीप्रियाजी की मुख-कान्ति। इसी मुख-शोभा के ही तो प्यासे थे श्रीश्यामसुन्दर के कजरारे नयन। श्रीप्रियतम के नयनों में छा गयी उल्लाससनी आनन्द की रेखाएँ। उल्लसित-आनन्दित श्रीश्यामल प्रियतम के अन्तर का आह्लाद भी संक्रमित हो उठा उन नभचारी बादलों के अन्तर में और आहलादातिरेक में वे भी मन्द मन्द गर्जन करने लगे। मन्द मन्द गर्जन भी सोद्देश्य है। तीव्र गर्जन से तो श्रीप्रियाजी की राग-रागिनी के उल्लास में व्यवधान उपस्थित हो जाता। इस मन्द गर्जन ने भी उद्दीपन का ही कार्य किया। पावस ऋतु के इस लुभावने-सुहावने रंगभरे वातावरण ने श्रीप्रियाजी के अन्तर में अधिकाधिक उमंग उद्दीप्त कर दी। निकुञ्ज के बरामदे में अद्भुत समाँ बँध गया।
नभ के श्यामल मेघ रह-रह करके श्रीप्रियाजी के उमंग की और श्रीप्रियतम के आह्लाद की जयकार मना रहे हैं और विद्युल्लता रह-रह करके बलिहार जा रही है इन युगल रसिकों के उमंग पर, आह्लाद पर।
राधे राधे
यदि आपको यह कथा चिंतन पसंद आए । तथा आप हमारे साथ whatsapp no.+919711592529 पर जुड़ने हेतु केवल whatsapp करे
तथा हमारे youtube channel @brajrasmadira ko subscribe करे और यदि पसंद आए तो अन्यों को जरूर भेजे
राधे श्याम facebook पेज #श्रीजी मंजरी दास पर भी अपनी उपस्थिति प्रदान करे ।🙏🙏