Saturday, July 12, 2025

गो प्रेम गौ के श्याम 1

        
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         ━❀꧁ हरे कृष्ण ꧂❀━ 
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      *"कृष्ण का गऊ प्रेम”*  
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एक दिन कान्हा नन्दभवन से निकलकर सीधा गोशाला में पहुँच गये। वहाँ पर एक गाय उन्हें अपना दूध पिलाने के लिये उनकी प्रतिक्षा कर रही थी। वात्सल्य-स्नेह से उस गाय का दूध अपने आप झरता जा रहा था। वह वात्सल्य वश व बालक श्रीकृष्ण के दर्शन के हेतु एकटक दृष्टि नन्दभवन दरवाजे पर लगाये थी कि कब कान्हा बाहर निकले और वह उन्हें अपना दूध पिलाकर अपना जीवन सार्थक कर सके। 

अब कान्हा भी उसके पवित्र प्रेम की उपेक्षा भला कैसे करते ! वह नन्द भवन से निकलकर गोशाला में सीधे उस गाय के पास पहुँचे और उसके थन में मुँह लगाकर लगे उसका दूध पीने लगे। इधर कान्हा तो दुग्धपान का आनन्द ले रहे थे।  वहाँ नन्दभवन में मईया यशोदा बालक कृष्ण को ढूंढ़ कर परेशान हो रही थी। मईया यशोदा जी कन्हा को चारों तरफ़ देख रही थीं।  वे बार-बार कान्हा-कान्हा करके कान्हा को पुकार रही थीं। 

कान्हा ! ओ कान्हा ! तू कहाँ गया, अरे जल्दी से आ भी जा ! मैं कब से तेरी प्रतीक्षा कर रही हूँ, लेकिन जब कान्हा होता तब न सुनता, वह तो अपनी गाय का दूध पी रहा था। माता यशोदा उसे पुकारती हुई सोच रही थी, पता नही कन्हैया कहाँ चला गया। उसने अभी तक सुबह से कुछ खाया भी नही है। थक हारकर उन्होंने बालक कृष्ण को बाहर ढूंढ़ना शुरु किया। उन्होंने खिड़की से बाहर झांककर देखा, तो चकित होकर देखती ही रह गयीं। कान्हा तो अपनी गोमाता के थन में मुँह लगाकर दूध पी रहा है। गाय प्रेम व वात्सल्य से कन्हैया का सिर चाट रही है।
      
यशोदा मैया ने कहा कि हे गोमाता ! तू धन्य है !  मैं तो अभी तक अपने कान्हा के कलेवा की चिन्ता कर रही थी, और तूने तो उसे दूध भी पिला दिया। मैं तुम्हें शत-शत नमन करती हूँ। यहाँ कान्हा की अदभुत गौ प्रेम की लीला का अद्भुत और विलक्षण दृश्य है।
    
भगवान श्री कृष्ण ने भी गोमाता की पूजा की थी। पूजा का मन्त्र है–’ऊँ सुरभ्यै नम:


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हरे ......कृष्णा....हरे.....कृष्णा...कृष्णा..
कृष्णा.....हरे ....हरे....हरे....राम..हरे.....
राम......राम.......राम.....हरे.....हरे.....
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     ━❀꧁𝐻𝑎𝑟𝑒 𝐾𝑟𝑖𝑠ℎ𝑛𝑎꧂❀━
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Friday, July 11, 2025

गुरु पूर्णिमा का अर्थ ओर क्यों मनाते हे सनातनी यह पर्व जानिए इतिहास (gurupurnima meaning)


         ━❀꧁ हरे कृष्ण ꧂❀━ 

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       ☺ *”व्यास–गुरु पूर्णिमा”* ☺ 
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महर्षि वेदव्यास जी अमर हैं। महान विभूति वेदव्यास का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा को लगभग 3000 ई. पूर्व में हुआ था। महर्षि व्यास का पूरा नाम कृष्णद्वैपायन है। उन्होंने वेदों का विभाग किया, इसलिए उनको व्यास या वेदव्यास कहा जाता है। उनके पिता महर्षि पराशर तथा माता सत्यवती है। 
           
भारत भर में गुरुपूर्णिमा के दिन गुरुदेव की पूजा के साथ महर्षि व्यास की पूजा भी की जाती है। महर्षि वेदव्यास भगवान विष्णु के कालावतार माने गए हैं। द्वापर युग के अंतिम भाग में व्यासजी प्रकट हुए थे। उन्होंने अपनी सर्वज्ञ दृष्टि से समझ लिया कि कलियुग में मनुष्यों की शारीरिक शक्ति और बुद्धि शक्ति बहुत घट जाएगी। इसलिए कलियुग के मनुष्यों को सभी वेदों का अध्ययन करना और उनको समझ लेना संभव नहीं रहेगा।
           
व्यासजी ने यह जानकर वेदों के चार विभाग कर दिए। जो लोग वेदों को पढ़, समझ नहीं सकते, उनके लिए महाभारत की रचना की। महाभारत में वेदों का सभी ज्ञान आ गया है। धर्मशास्त्र, नीतिशास्त्र, उपासना और ज्ञान-विज्ञान की सभी बातें महाभारत में बड़े सरल ढंग से समझाई गई हैं।
           
इसके अतिरिक्त पुराणों की अधिकांश कथाओं द्वारा हमारे देश, समाज तथा धर्म का पूरा इतिहास महाभारत में आया है। महाभारत की कथाएं बड़ी रोचक और उपदेशप्रद हैं। सब प्रकार की रुचि रखने वाले लोग भगवान की उपासना में लगें और इस प्रकार सभी मनुष्यों का कल्याण हो। इसी भाव से व्यासजी ने अठारह पुराणों की रचना की। ‘श्रीजी की चरण सेवा’ की सभी धार्मिक, आध्यात्मिक एवं धारावाहिक पोस्टों के लिये हमारे फेसबुक पेज ‘श्रीजी की चरण सेवा’ को फॉलो तथा लाईक करें और अपने सभी भगवत्प्रेमी मित्रों को भी आमंत्रित करें। इन पुराणों में भगवान के सुंदर चरित्र व्यक्त किए गए हैं। भगवान के भक्त, धर्मात्मा लोगों की कथाएं पुराणों में सम्मिलित हैं। इसके साथ-साथ व्रत-उपवास को की विधि, तीर्थों का माहात्म्य आदि लाभदायक उपदेशों से पुराण परिपूर्ण है।
           
वेदांत दर्शन के रचना करने वाले महर्षि वेदव्यास ने वेदांत दर्शन को छोटे-छोटे सूत्रों में लिखा गया है, लेकिन गंभीर सूत्रों के कारण ही उनका अर्थ समझने के लिए बड़े-बड़े ग्रंथ लिखे हैं। 
           
धार्मिक मान्यता के अनुसार ही गुरुपूर्णिमा पर गुरुदेव की पूजा के साथ ही महर्षि व्यास की पूजा भी की जाती है। हिन्दू धर्म के सभी भागों को व्यासजी ने पुराणों में भली-भांति समझाया है। महर्षि व्यास सभी हिन्दुओं के परम पुरुष हैं।
                                             
                      “ॐ श्रीगुरुवे नमः”

        
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Friday, July 4, 2025

चकित चकवा मानसिक रूप-लीला चिंतन

चकित चकवा
राधा राधा राधा राधा राधा राधा राधा राधा राधा राधा.....

श्रीयुगल रसिकों के रास-विहार के दर्शन में विमुग्ध-विलुब्ध चकवे को पता ही नहीं चला कि मध्य रात्रि की बेला हो गयी। निशान्त बेला के उपरान्त श्रीयुगल रसिकों के सहनृत्य का शुभारम्भ हुआ था। नृत्य की अद्भुत गति ने सभी को विमोहित कर रखा था। किसी को भी समयका भान नहीं था। अपने अस्तित्व को भूले हुए सभी तादात्म्यभाव में निमग्न थे।

भाव के किञ्चित् शमित होने पर चकवे ने देखा कि मैं अपनी चकवी के पास वृक्ष की शाखा पर बैठा हुआ हूँ और मेरी चकवी मेरे पार्श्व में बैठी रास-विहार को देख रही है। चकवे को विस्मय हो रहा था कि रात हो गयी है, इसके बाद भी मेरी चकवी मेरे समीप है। विधाता के विधान के अनुसार इसे अलग हो जाना चाहिये था। विधाता को मैं सदा ही कोसता रहता हूँ कि उसने यह क्या विधान बनाया कि चकवी रातभर के लिये चकवे से अलग हो जाया करती है। प्रिय का विलग हो जाना कितना प्रपीड़ित करता है, यह वह विधाता क्या जाने? घायल ही घायल के मर्म को जान पाता है। आज विधाता के विधान में यह अपवाद कैसे हो गया?

चकवा अपने अन्तर के विस्मय को छिपा नहीं पाया। वह समीप बैठी अपनी चकवी से पूछ बैठा- आज यह कैसे सम्भव हो गया कि सूर्यास्त के बाद चकवी-चकवा का जो पारस्परिक बिलगाव हुआ करता है, वह इस समय नहीं हुआ? अब तो आधी रात होने को आयी और तुम तब से अब तक सतत मेरे पास हो। यह कैसे हो गया?

चकवी ने अनुमान लगा लिया कि इसे अभी श्रीप्रिया-प्रियतम के रसराज्य के अनोखेपन का परिज्ञान नहीं है। चकवी ने बतलाना आरम्भ किया- वह देखो, श्रीयमुनाजी के मन्थर प्रवाह की ओर। तट के समीप कितने कमल खिले हुए हैं! कमल भी अनेक रंग के हैं। क्या रात को कमल खिलते हैं? सूर्यास्त होते ही इन कमलों को सम्पुटित हो जाना चाहिये था, परन्तु रास-विहार की दिव्य लीला के अनुरूप आकर्षक वातावरण के निर्माण के लिये ये कमल तनिक भी संकुचित या सम्पुटित नहीं हुए, अपितु पूर्ण रूप से विकसित हैं। यहाँ क्या विधाता के विधान का किसी भी रूप में कोई अनुशासन है? सत्य तो यह है कि वह विधाता और उसका वह विधान ही यहाँ के अनुशासन से अनुशासित रहता है, सदा संकुचित रहता है। उस विधि-विधान का इस लीला-राज्य में प्रवेश ही नहीं। दिव्य लीला के रसोत्कर्ष में जो भी आवश्यक होगा, वह सब यहाँ होगा और देखो, जिस वृक्ष पर हम दोनों बैठे हैं, उस वृक्ष के मूलभाग की ओर देखो।

चकवी के कहने पर वह चकवा, जो श्रीयमुनाजी में विकसित कमलों को साश्चर्य देख रहा था, उस चकित चकवे ने पुनः साश्चर्य देखा कि वृक्ष के मूलभाग में एक बड़े सर्प के फैले फण पर एक मेढक बैठा है। मेढक को सर्प के फण पर बैठे हुए देखकर चकवा चकित स्वर में बोल पड़ा- मेढक तो सर्प का भोजन है। भक्ष्य मेढक से सर्प को इतना प्यार?

चकवी ने फिर समझाना आरम्भ किया- विधाता की त्रिगुणात्मक सृष्टि में मेढक सर्प का भक्ष्य हो सकता है, परन्तु श्रीप्रिया-प्रियतम के इस त्रिगुणातीत प्रेम-राज्य में वह मेढक भी सर्प के द्वारा लाल्य है। मेढक को सर्प ने अपने फण पर इसलिये बैठा रखा है कि वह ऊँचे बैठकर भली प्रकार से रास-विहार का दर्शन कर सके। तुम यह मान लो, पूर्णतः मान लो कि ब्रह्मा की जड़-चेतनात्मक, गुण-दोषमय सृष्टि के संचालन संतुलन के लिये विधि-निषेध के विविध नियम ब्राह्मी सृष्टि का नियमन नियंत्रण भले करते रहें, परन्तु श्रीप्रिया-प्रियतम का नित्य निर्विकार और नितान्त निर्मल निकुञ्ज राज्य उन विविध नियमों की नियमन परिधि से सर्वथा परे है। यहाँ निकुञ्ज-राज्य में वही होगा, जो प्रीति का पोषक हो, जो परसुख प्रदायक हो और जो श्रीप्रिया-प्रियतम की रस-रीति के उत्कर्ष में सहायक हो। तभी तो तुम मेरे पास हो, मैं तुम्हारे पास हूँ, तभी रात में भी कमल विकसित होते हैं और सर्प भी मेढक से प्रीति रखता है।

विस्मय में डूबा चकवा सिहर-सिहरकर बोल उठा श्रीप्रिया-प्रियतम के इस अनोखे रस-राज्य की जय हो, सदा जय हो, इसकी बार-बार बलिहारी

🙏🙏 राधे श्याम जी 🙏🙏
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गो प्रेम गौ के श्याम 1

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