Sunday, October 29, 2023

प्रेम रस मदिरा सबसो हित श्री राधा बाग मे चतुरासी जी 15

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कृपा भी नही मिलती । 

फिर बाबा बोले - अच्छा  सुनो ,   एक लुटेरा था श्रीवृन्दावन में ....उसका नाम था नरवाहन ।  

वो लूटता था ...जो व्यापारियों का माल श्रीवृन्दावन से होकर जाता था तो वो टैक्स लेता था ...पहले तो यमुना जी बहुत बड़ी थीं ....जल भी बहुत था ..पानी जहाज़ चलते थे ..दिल्ली आगरा प्रयाग आदि व्यापारी लोग नाव से ही सामान लेकर आते जाते थे ...तो नरवाहन उन्हें लूटता था ....इसके लोग थे  लुटेरे ...उन सबका सरदार ये नरवाहन राजा कहलाता था । 

श्रीहित सखी के अवतार  श्रीहित हरिवंश महाप्रभु  श्रीधाम वृन्दावन आये .....तो इनके साथ इनकी दो पत्नियाँ और श्रीराधा बल्लभ लाल जू थे ।   ये विवाह इन्होंने भोग वश नही किया था ...एक पण्डित जी थे ...वही अपनी दो बेटियों को इन्हें दे गये ...ये आ रहे थे श्रीवृन्दावन ।

बाबा  राधा बाग आगये...और प्रेम से बैठ गये रज में , जहां बैठते थे ...
श्रोता लोग बैठे हैं ।  पाँच बजने में अभी समय है ।   

हाँ ,  तो मैंने कह रहा था ...उन पण्डित जी के पास थे श्रीराधा बल्लभ लाल ...उन श्रीराधा बल्लभ जू को  लेने के लिए श्रीहित हरिवंश जू ने उन दोनों कन्याओं से विवाह किया ....क्यों की वो पण्डित जी बोले थे ...इनको तो मैं दहेज में ही दूँगा अपनी बेटियों के साथ ।  तो उन कन्याओं से विवाह करके श्रीराधा बल्लभ जी को लेकर  श्रीहित हरिवंश जू आगये  श्रीधाम वृन्दावन ।   उन दिनों श्रीवृन्दावन सच में ही वन था ....टीले बहुत थे ...तो मदन टेर नामक टीले में आकर श्रीहित जू ने  उनके ठाकुर श्रीराधा बल्लभ जू को विराजमान कराया ।     

पागल बाबा बोले - उन दिनों टीलों पर क़ब्ज़ा था नरवाहन का ....क्यों की यमुना में कौन सी नाव जा रही है , कौन सी आरही है ...ये उन के लुटेरे टीले पर चढ़कर ही देखते थे ...श्रीहित हरिवंश जी ही पहले थे जिन्होंने निर्भय होकर मदन टेर ही नही ..आगे आगे के टीले भी ले लिए थे ।     नरवाहन से उनके लोगों  ने कहा ....कोई ग्रहस्थ संत है  ठाकुर जी सेवा करता है ....उसने हमारे सारे टीले क़ब्ज़े कर लिए हैं .....आप कहें तो हम हटा दें । 

नरवाहन ने कुछ सोचकर कहा ...मैं देखता हूँ ।  

नरवाहन गये .....वहाँ देखा तो श्रीहित जू  दिव्य स्वरूप धारण  करके विराजे थे ...उनका गौर वर्ण ...उनकी कान्ति ....उनकी प्यारी मुस्कुराहट ...उनका वो दिव्य आभा मण्डल । उनके अंग से “राधा राधा राधा” नाम प्रकट हो रहा था । नरवाहन देखते रहे ...वो सुध बुध भूलने लगे , उस दिव्य रसपूर्ण नाम के श्रवण से ही ये नरवाहन  श्रीहित जू के चरणों में गिर गये ।   और राधा नाम महामन्त्र उन्होंने प्राप्त किया । 

बाबा बोले -  शिष्य तो श्रीहित जू के कई हैं .....ओरछा के राजगुरु  श्रीहरिराम व्यास जी भी इनके ही शिष्य थे...पर पूर्ण कृपा बरसी  ....नरवाहन के ऊपर ।    

 क्यों ?   शाश्वत ने पूछा ।

क्यों की इसकी कोई गति नही थी .....ये तो लुटेरा था ...दूर दूर तक  मुक्ति की बात छोड़ो स्वर्ग जाने की व्यवस्था भी इसके पास नही थी ...क्यों की पुण्य कुछ था नही ।  इसलिये इन सखी जू ने ....कृपा करके नरवाहन को ......ओह ! सीधे निकुँज में प्रवेश दिला दिया ...ये सखी की कृपा थी क्यों की “हित सखी” यही तो हैं ।

फिर  राधा बाग  को लोगों से भरा हुआ देखा  बाबा ने तो कहा ....श्रीहित चौरासी में  गोसाईं श्रीहित हरिवंश जी के छाप सारे पदों में है ....बस दो पद में  - एक ग्यारहवाँ और बारहवाँ ..में ही “नरवाहन प्रभु” नामकी छाप मिलती है .....जो ये नरवाहन को लेकर हित सखी पहुँच जाती हैं और निकुँज में ,  जाकर  नरवाहन जो दर्शन करते हैं ...आहा !    ये साधन साध्य थोड़े ही है ..निकुँज में प्रवेश ...इसके लिए तो सखी की कृपा चाहिये ....उसके बिना सम्भव नही है । 

इसके बाद बाबा  आज के श्रीहित चौरासी जी  का  ग्यारहवाँ पद   गाने के लिए कहते हैं ...गौरांगी मधुर स्वर से वीणा में गायन करती है ।

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और हाँ , ये सब तो सुन्दर है ही पर इन सबको भी मात दे रहे हैं  श्याम द्युति वाले श्याम सुन्दर और तप्त सुवर्ण के समान अंग वाली श्रीराधा रानी ।    दोनों विहार करते हैं ना तो  जो आनन्द बरसता है वो कह नही सकते ।  विहार करते हुये ऐसा लगता है काले बादलों में बिजली चमक रही है । 

दोनों के वस्त्र भी तो देखो एक ने पीताम्बर ओढ़ के मानों अपनी प्रिया को ही ओढ़ लिया है और जो प्रिया ने ओढ़नी ओढ़ी है  वो ऐसे चमक रही है जैसे श्याम सुन्दर अपनी प्रिया को देखकर आज चमक रहे हैं ।    अब क्या उपमा दूँ ?  अनुराग का जो कन्द है वो ये हैं ...अब इसका वर्णन कैसे हो सकता है ।  सखी ! देख ....शीतल हवा चल रही है यमुना जी का जल भी शीतल हो  गया है ...वातावरण  में शीतलता ही है ....अब जिस कमल दल में ये विराजे हैं ...सखी !  वो भी शीतल है ...पर श्याम सुन्दर को देखो ...वो अपने नयनों से प्रार्थना कर रहे हैं अपनी प्यारी की ।  क्यों ?  दूसरी ने पूछा । इसलिए की इनकी प्यारी आज मान कर रही हैं ....ये मना रहे हैं  पर वो मान नही रहीं ।     ये छू रहे हैं ....पर प्यारी ...ना ना ना  ही करती जा रही हैं ।  

अब मैं समझी !   क्या समझी तू ? 

सखी !   कामदेव को ये  श्याम सुन्दर  रोज मथते थे  ना , पर आज वो इन्हें मथ के चला गया ।  इस बात पर सब हंसी ।

हित सखी के साथ आज नरवाहन सखी भी आई है ....वो इस निकुँज रस को अपने नेत्रों से पीकर उन्मत्त हो गयी है ....वो रस केलि को देखकर उन्मादी हो चली है ....अब वो आगे आई ...और बोली ...हे प्यारी जू !  हरि से केलि करो ।   रस में डुबो दो इन्हें ....तुम तो सुरत रस की सरिता हो ...बहा ले जाओ इन्हें ।  डुबो दो प्यारी जू !  क्यों की यही रस  जग का मंगल करने वाला है ।

ये बात  नरवाहन सखी ने कही थी । 

धन्य हैं ये रसोपासना के आचार्य जिन्होंने सामान्य जीवों पर ये रस बरसाकर कितनी कृपा की .....आपकी कृपा हम पर भी हो .....जय हो जय हो ।

बाबा इतना ही बोले ...गौरांगी ने ग्यारहवें पद का फिर से गान किया ।

“मंजुल कल कुंज देस , राधा हरि विशद वेस.........

आगे की चर्चा अब कल - 
हरि शरण जी 


श्रीजी मंजरी दास (सूर श्याम प्रिया दास) 

सखि नामावली