अद्वितीय रसिक - “आजु नागरी किशोर” )
28, 5, 2023
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गतांक से आगे -
इनके जैसे रसिक न हुये, न होंगे ...’मन्मथ’को ही इन्होंने इतना मथा कि वो ‘रस’ बन गया ।
कामदेव का स्थान है निकुँज में ...काम के अनेक नाम हैं ...मदन , मनोज , मन्मथ ....इस संसार का लौकिक “काम” भले ही निन्दनीय हो ....पर निकुँज में ये मदन ..प्रेम का ही रूप बन जाता है ....फिर इस मदन के बिना यहाँ रस केलि का आविर्भाव ही नही होता । ये काम जब कृष्ण से जुड़ जाता है ...तब ये निन्दनीय कहाँ रहा ? निन्दनीय तो तब है जब संसार की वासनाओं में ये उलझा रहे ....किन्तु जब यही मदन , गोपाल की शरण में चला जाता है ...तब ये वन्दनीय हो जाता है....फिर निकुँज में काम का अर्थ वासना से नही किया जाता ...यहाँ तो ये प्रेम का ही एक रूप बन जाता है ...प्रेम खेल में इसका बहुत बड़ा योगदान है ।
अजी ! इनके ( युगल सरकार ) जैसा रसिक कौन हुआ ?
इनके जैसा रास किसने किया ? सम्पूर्ण सृष्टि में रस की जो किंचित ही सही अनुभूति हो रही है ...वो कहाँ से हो रही है ? सृष्टि में आनन्द जो अनुभव में आरहा है उसका मूल श्रोत कहाँ है ? प्रेम की भावना से जीव जब भावित होता है और उसे जो तृप्ति मिलती है ...वो प्रेम कहाँ से प्रकट हो रहा है । अरे भई ! कहीं तो इनका समुद्र होगा जहां से ये हमें मिल रहा है ....हाँ है ना ! श्रीवृन्दावन । बोलो - श्री वृन्दावन । आया ना रस ? यहाँ प्रेम का समुद्र है ..यहीं लहराता है ये सिन्धु ...यहीं युगल क्रीड़ा करते हैं ..यहीं रस रास का रूप लेकर सर्वत्र रस वितरण करता है ।
यहाँ रसराज विराजमान हैं ..अद्वितीय रसिक हैं ये , ऐसे न हुये न होंगे ।
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आज बरसाने में वर्षा हुई है ...रिमझिम वर्षा ...बूँदे लताओं के पल्लवों में मोती की भाँति शोभा पा रही हैं...अवनी शीतल हुई है ...मोर अपने पंखों को समेटे हुये हैं और कभी कभी बोल भी उठते हैं ...और कभी तो पंख फैला कर वर्षा की बूँदों को झाड़ भी रहे हैं । पक्षी अपने चोंच में जल भर कर अपने घोंसले में जा रहे हैं । कोयल बोलती है कभी कभी ...तो वातावरण में और रस घुल जाता है ।
राधा बाग तैयार है श्रीहित चौरासी जी के लिए ।
आज लोग समय से पूर्व ही आगये है ....कोई श्रीराधा नाम का जाप कर रहे हैं ....तो कोई ध्यान कर रहा है ...कोई पदों का गान कर रहा है ...तो कोई माला आदि बनाने में गौरांगी से सेवा माँग रहा है ...तो कोई रसिकों के लिए बिछाबन बिछा रहा है ।
बाबा पधारे हैं ..आज ये मोर कुटी गये थे ...वहीं से आरहे हैं ...मैंने आते ही पूछा ...मोर कुटी में ?
तो बोले ...पाँच सौ वर्ष के एक महात्मा , जो अभी भी गुप्त रूप से वहाँ वास करते हैं ..उन्हीं के दर्शन करने गया था ....मैं आश्चर्यचकित था ये सुनकर ...किन्तु मैं कुछ नही बोला ।
बाबा बैठ गये हैं ....सब लोगों ने अपने अपने स्थान से ही दण्डवत प्रणाम किया बाबा को ।
कुछ देर आज श्रीराधा नाम संकीर्तन हुआ ...ये संकीर्तन अद्भुत था ...सब देह भान भूल कर श्रीराधामय हो गये थे ।
आज दसवें पद का गायन होगा ...श्रीहित चौरासी जी के दसवें पद ......
गौरांगी ने वीणा सम्भाली ...पखावज और बाँसुरी के साथ पद का गायन प्रारम्भ हो गया था ।
बाबा आज स्वयं उच्च स्वर से पद का गायन कर रहे थे ।
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आजु नागरी किशोर , भाँवती विचित्र जोर ,
कहा कहौं अंग-अंग परम माधुरी ।
करत केलि कण्ठ मेलि , बाहु दंड गंड-गंड ,
परस सरस रास लास मंडली जुरी ।
श्याम - सुन्दरी - बिहार , बाँसुरी मृदंग तार ,
मधुर घोष नूपुरादि किंकिणी चुरी ।
देखत हरिवंश आलि , निर्तनी सुधंग चाल ,
वारि फेर देत प्राण देह सौं दुरी ।10 ।
गायन के पश्चात वाणी जी को सबने रख दिया ।
नेत्र सबने बन्द कर लिए हैं ....और अब ध्यान । इस पद का ध्यान पागल बाबा करायेंगे ।
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!! ध्यान !!
सुन्दर कुँज है ....सखीगण आज बहुत सुंदर बन कर बैठी हैं ....सामने युगल सरकार है जो रस मत्तता के कारण सब कुछ भूले हुए हैं । सखीगण गान की तैयारी कर रही हैं ...वाद्य आदि सब सामने हैं ....कोई स्वर बैठा रही है तो कोई ताल । सखियों की संख्या सिर्फ आठ नही है ...अनगिनत हैं ..अष्ट सखियों की सखियाँ भी आठ आठ हैं ...फिर उनकी आठ की आठ आठ ....ऐसे अनगिनत हैं ....सब सुन्दर से सुन्दर हैं....यही सखियाँ इतनी सुन्दर हैं कि महालक्ष्मी का सौन्दर्य भी इनके आगे तुच्छ है ...फिर श्रीराधा रानी की तो बात ही छोड़ दीजिए ।
युगल सरकार के सामने एक जल का छोटा सा फुब्बार है ....उससे और शोभा बन रही है ।
तभी सामने से एक सखी आई ये हित सखी है ....और इसने आकर युगल सरकार के सामने एक खिला हुआ कमल रख दिया ...ये कमल स्वर्ण के रंग का था इसलिए युगल को ये कमल हित सखी ने भेंट किया था । श्याम सुन्दर का ध्यान अब उस कमल पर ही टिक गया है ...उसकी शोभा देख रहे हैं स्वर्ण का कमल देखकर श्याम सुन्दर को अपनी प्रिया श्रीराधा रानी की याद आती है ....तो वो तुरन्त अपनी प्यारी को निहारने लगते हैं ....प्रिया उनसे संकेत में पूछती हैं ...क्या हुआ ? तब श्याम सुन्दर उस कमल को दिखाकर कहते हैं ...बिल्कुल आपकी तरह है ये कमल भी ...आपके अंग की जो शोभा है वैसी ही इस कमल की भी है ...आपके अंग में जो सुगन्ध है वैसी ही इस कमल में भी है । ये सारी बातें इन की संकेत में हो रही हैं....किन्तु सखियाँ तो हृदय की बात जानती ही हैं ...इसलिए इनकी चर्चा में सखियों को अति आनन्द आ रहा है ।
तभी एक भ्रमर उड़ता हुआ आया और उस कमल में बैठ गया ...और कमल का मकरंद पान करने लगा .....ये देखकर श्याम सुन्दर अपनी प्रिया की ओर देखकर मुस्कुराये .....
बस इनका मुस्कुराना क्या हुआ ...हित सखी ने उस कुँज को ही बदल दिया ....वो कुँज अब मात्र कमल दल से सज्जित था ....उस कुँज के सोलह द्वार थे उस द्वार की बनावट में केवल कमल का ही प्रयोग था .....सामने सज्जा थी कमल दल की ....उसी में विराजे थे युगल सरकार ।
सखियों ने वाद्य बजाने शुरू कर दिये ...मृदंग, बाँसुरी, वीणा ...तभी सखियों ने सुना कि मन्द मन्द ध्वनि नूपुर और करधनी की भी आरही है । सामने देखा कि नागरी श्रीराधा रानी नृत्य कर रही हैं ...नृत्य अद्भुत है ...अनुपम है .....पूरा कुँज झूम रहा है .....किन्तु इतना ही नही ....दूसरी और श्याम सुन्दर भी नृत्य करते हुये इन्हीं के पास आरहे हैं । ये झाँकी तो कभी देखी नही गयी थीं...सखियाँ आनन्द में डूबी हुयी हैं ....और इनका शतगुना आनन्द तब और बढ़ गया जब इन्होंने इस रहस्य को जाना ....कि दोनों अब बदल गये हैं ....क्या ? जी , श्याम, सुन्दरी हो गये हैं और नागरी , किशोर हो गयीं हैं ....सखियाँ गान करती हैं ....
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आहा ! सखी देख तो ....
आज इन दोनों की जो जोरी है ...वो है तो बड़ी प्यारी ...किन्तु विचित्र है ....इनके अंग की थिरकन देख ...इनके अंग अंग में माधुर्य है ....माधुर्य का रस इनके अंगों से टपक रहा है ।
पर इस सुन्दर जोरी को तू विचित्र क्यों कह रही है ? ललिता सखी ने हित सखी से पूछा ।
तू समझ , हित सखी हंसकर बोली ।
किन्तु इन दोनों का नृत्य इतना उन्माद पूर्ण और उन्मुक्त था कि ललिता सखी भी समझ नही पाईं ।
तो हित सखी ने कहा .....नागरी हमारी श्रीराधा रानी किशोर बनी हैं और श्याम सुन्दर सुन्दरी का भेष धारण कर उन्मुक्त नृत्य कर रहे हैं .....ये सुनते ही सब आनंदित हो तालियाँ बजाने लगीं ....क्यों की सब पहचान गयीं थीं । पूरा कुँज प्रेम के उन्माद से भर गया था ।
सखी देख - दोनों एक दूसरे के कण्ठ में बाहु डालकर ....कभी बाहु से बाहु ....कपोल से कपोल मिलाकर कैसे रास और विलास की अनुपम सृष्टि कर रहे हैं । हित सखी कहती हैं ...ये प्रेम की ऊँचाई का दर्शन आज ही हुआ है .....
रास में संगीत की अपनी भूमिका होती है...पर सखी ! यहाँ तो संगीत भी इन्हीं का चल रहा है .....नूपुर की ध्वनि आहा ! करधनी की ध्वनि ! और कंक़ण की ध्वनि ! हमारे मृदंग, बाँसुरी वीणा ये ठीक हैं ...पर इन युगल का संगीत तो सृष्टि में महारस को प्रवाहित कर रहा है ।
पर तभी नृत्य पूरी गति से चल पड़ा था .....युगल मत्त हो गये रस के कारण ....नाना प्रकार से नृत्य कर रहे हैं ये दोनों ....कभी तेज गति तो कभी मन्द गति ....ताल में अपने चरण पटकते हैं , कभी दोनों एक दूसरे में लिपटते हैं ...इस नृत्य गति में कोई पहचान नही पा रहा अब कि कौन श्रीराधा हैं और कौन श्याम सुन्दर । दोनों ही अब नाचते नाचते एक हो रहे हैं .....
आहा ! इस रास लास्य की विचित्र झाँकी देख हितसखी कहती हैं ..सखियों ! इन युगलवर में सब कुछ न्योछावर करो ...अपना ये देह और प्राण दोनों ही ...क्यों की ऐसी विचित्र जोरी और ऐसा विचित्र नृत्य आज तक देखा नही था । सच है सखी ! ये दोनों अद्वितीय रसिक हैं ...ऐसे रसिक न हुये न होंगे ....इतना ही कहा हित सखी ने और सब मौन हो गयीं ।
पागल बाबा आज अंतिम में कहते हैं -
चन्द्र मिटे सूरज मिटे , मिटे त्रिगुण विस्तार ।
दृढ़ व्रत श्रीहरिवंश को , मिटे न नित्य विहार ।।
सब मिट जाएगा .....किन्तु ये रस का विहार कभी भी मिटेगा ।
गौरांगी ने अब फिर श्रीहित चौरासी जी के इस दसवें पद का गायन किया ....
पूरा राधा बाग गा रहा था ।
“आजु नागरी किशोर , भाँवती विचित्र जोर”..........
आगे की चर्चा अब कल -