Sunday, October 29, 2023

प्रेम रस मदिरा सबसो हित श्री राधा बाग मे चतुरासी जी 15

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कृपा भी नही मिलती । 

फिर बाबा बोले - अच्छा  सुनो ,   एक लुटेरा था श्रीवृन्दावन में ....उसका नाम था नरवाहन ।  

वो लूटता था ...जो व्यापारियों का माल श्रीवृन्दावन से होकर जाता था तो वो टैक्स लेता था ...पहले तो यमुना जी बहुत बड़ी थीं ....जल भी बहुत था ..पानी जहाज़ चलते थे ..दिल्ली आगरा प्रयाग आदि व्यापारी लोग नाव से ही सामान लेकर आते जाते थे ...तो नरवाहन उन्हें लूटता था ....इसके लोग थे  लुटेरे ...उन सबका सरदार ये नरवाहन राजा कहलाता था । 

श्रीहित सखी के अवतार  श्रीहित हरिवंश महाप्रभु  श्रीधाम वृन्दावन आये .....तो इनके साथ इनकी दो पत्नियाँ और श्रीराधा बल्लभ लाल जू थे ।   ये विवाह इन्होंने भोग वश नही किया था ...एक पण्डित जी थे ...वही अपनी दो बेटियों को इन्हें दे गये ...ये आ रहे थे श्रीवृन्दावन ।

बाबा  राधा बाग आगये...और प्रेम से बैठ गये रज में , जहां बैठते थे ...
श्रोता लोग बैठे हैं ।  पाँच बजने में अभी समय है ।   

हाँ ,  तो मैंने कह रहा था ...उन पण्डित जी के पास थे श्रीराधा बल्लभ लाल ...उन श्रीराधा बल्लभ जू को  लेने के लिए श्रीहित हरिवंश जू ने उन दोनों कन्याओं से विवाह किया ....क्यों की वो पण्डित जी बोले थे ...इनको तो मैं दहेज में ही दूँगा अपनी बेटियों के साथ ।  तो उन कन्याओं से विवाह करके श्रीराधा बल्लभ जी को लेकर  श्रीहित हरिवंश जू आगये  श्रीधाम वृन्दावन ।   उन दिनों श्रीवृन्दावन सच में ही वन था ....टीले बहुत थे ...तो मदन टेर नामक टीले में आकर श्रीहित जू ने  उनके ठाकुर श्रीराधा बल्लभ जू को विराजमान कराया ।     

पागल बाबा बोले - उन दिनों टीलों पर क़ब्ज़ा था नरवाहन का ....क्यों की यमुना में कौन सी नाव जा रही है , कौन सी आरही है ...ये उन के लुटेरे टीले पर चढ़कर ही देखते थे ...श्रीहित हरिवंश जी ही पहले थे जिन्होंने निर्भय होकर मदन टेर ही नही ..आगे आगे के टीले भी ले लिए थे ।     नरवाहन से उनके लोगों  ने कहा ....कोई ग्रहस्थ संत है  ठाकुर जी सेवा करता है ....उसने हमारे सारे टीले क़ब्ज़े कर लिए हैं .....आप कहें तो हम हटा दें । 

नरवाहन ने कुछ सोचकर कहा ...मैं देखता हूँ ।  

नरवाहन गये .....वहाँ देखा तो श्रीहित जू  दिव्य स्वरूप धारण  करके विराजे थे ...उनका गौर वर्ण ...उनकी कान्ति ....उनकी प्यारी मुस्कुराहट ...उनका वो दिव्य आभा मण्डल । उनके अंग से “राधा राधा राधा” नाम प्रकट हो रहा था । नरवाहन देखते रहे ...वो सुध बुध भूलने लगे , उस दिव्य रसपूर्ण नाम के श्रवण से ही ये नरवाहन  श्रीहित जू के चरणों में गिर गये ।   और राधा नाम महामन्त्र उन्होंने प्राप्त किया । 

बाबा बोले -  शिष्य तो श्रीहित जू के कई हैं .....ओरछा के राजगुरु  श्रीहरिराम व्यास जी भी इनके ही शिष्य थे...पर पूर्ण कृपा बरसी  ....नरवाहन के ऊपर ।    

 क्यों ?   शाश्वत ने पूछा ।

क्यों की इसकी कोई गति नही थी .....ये तो लुटेरा था ...दूर दूर तक  मुक्ति की बात छोड़ो स्वर्ग जाने की व्यवस्था भी इसके पास नही थी ...क्यों की पुण्य कुछ था नही ।  इसलिये इन सखी जू ने ....कृपा करके नरवाहन को ......ओह ! सीधे निकुँज में प्रवेश दिला दिया ...ये सखी की कृपा थी क्यों की “हित सखी” यही तो हैं ।

फिर  राधा बाग  को लोगों से भरा हुआ देखा  बाबा ने तो कहा ....श्रीहित चौरासी में  गोसाईं श्रीहित हरिवंश जी के छाप सारे पदों में है ....बस दो पद में  - एक ग्यारहवाँ और बारहवाँ ..में ही “नरवाहन प्रभु” नामकी छाप मिलती है .....जो ये नरवाहन को लेकर हित सखी पहुँच जाती हैं और निकुँज में ,  जाकर  नरवाहन जो दर्शन करते हैं ...आहा !    ये साधन साध्य थोड़े ही है ..निकुँज में प्रवेश ...इसके लिए तो सखी की कृपा चाहिये ....उसके बिना सम्भव नही है । 

इसके बाद बाबा  आज के श्रीहित चौरासी जी  का  ग्यारहवाँ पद   गाने के लिए कहते हैं ...गौरांगी मधुर स्वर से वीणा में गायन करती है ।

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और हाँ , ये सब तो सुन्दर है ही पर इन सबको भी मात दे रहे हैं  श्याम द्युति वाले श्याम सुन्दर और तप्त सुवर्ण के समान अंग वाली श्रीराधा रानी ।    दोनों विहार करते हैं ना तो  जो आनन्द बरसता है वो कह नही सकते ।  विहार करते हुये ऐसा लगता है काले बादलों में बिजली चमक रही है । 

दोनों के वस्त्र भी तो देखो एक ने पीताम्बर ओढ़ के मानों अपनी प्रिया को ही ओढ़ लिया है और जो प्रिया ने ओढ़नी ओढ़ी है  वो ऐसे चमक रही है जैसे श्याम सुन्दर अपनी प्रिया को देखकर आज चमक रहे हैं ।    अब क्या उपमा दूँ ?  अनुराग का जो कन्द है वो ये हैं ...अब इसका वर्णन कैसे हो सकता है ।  सखी ! देख ....शीतल हवा चल रही है यमुना जी का जल भी शीतल हो  गया है ...वातावरण  में शीतलता ही है ....अब जिस कमल दल में ये विराजे हैं ...सखी !  वो भी शीतल है ...पर श्याम सुन्दर को देखो ...वो अपने नयनों से प्रार्थना कर रहे हैं अपनी प्यारी की ।  क्यों ?  दूसरी ने पूछा । इसलिए की इनकी प्यारी आज मान कर रही हैं ....ये मना रहे हैं  पर वो मान नही रहीं ।     ये छू रहे हैं ....पर प्यारी ...ना ना ना  ही करती जा रही हैं ।  

अब मैं समझी !   क्या समझी तू ? 

सखी !   कामदेव को ये  श्याम सुन्दर  रोज मथते थे  ना , पर आज वो इन्हें मथ के चला गया ।  इस बात पर सब हंसी ।

हित सखी के साथ आज नरवाहन सखी भी आई है ....वो इस निकुँज रस को अपने नेत्रों से पीकर उन्मत्त हो गयी है ....वो रस केलि को देखकर उन्मादी हो चली है ....अब वो आगे आई ...और बोली ...हे प्यारी जू !  हरि से केलि करो ।   रस में डुबो दो इन्हें ....तुम तो सुरत रस की सरिता हो ...बहा ले जाओ इन्हें ।  डुबो दो प्यारी जू !  क्यों की यही रस  जग का मंगल करने वाला है ।

ये बात  नरवाहन सखी ने कही थी । 

धन्य हैं ये रसोपासना के आचार्य जिन्होंने सामान्य जीवों पर ये रस बरसाकर कितनी कृपा की .....आपकी कृपा हम पर भी हो .....जय हो जय हो ।

बाबा इतना ही बोले ...गौरांगी ने ग्यारहवें पद का फिर से गान किया ।

“मंजुल कल कुंज देस , राधा हरि विशद वेस.........

आगे की चर्चा अब कल - 
हरि शरण जी 


श्रीजी मंजरी दास (सूर श्याम प्रिया दास) 

Monday, October 2, 2023

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 14

अद्वितीय रसिक - “आजु नागरी किशोर” )

28, 5, 2023
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गतांक से आगे - 

इनके जैसे रसिक न हुये, न होंगे ...’मन्मथ’को ही इन्होंने इतना मथा कि वो ‘रस’ बन गया । 

कामदेव का स्थान है  निकुँज में ...काम के अनेक नाम हैं ...मदन ,  मनोज , मन्मथ ....इस संसार का लौकिक “काम” भले ही निन्दनीय हो ....पर निकुँज में ये मदन ..प्रेम का ही रूप बन जाता है ....फिर इस मदन के बिना यहाँ  रस केलि का आविर्भाव ही नही होता ।   ये काम  जब कृष्ण से जुड़ जाता है ...तब ये निन्दनीय कहाँ रहा ?  निन्दनीय तो तब है जब संसार की वासनाओं में ये उलझा रहे ....किन्तु जब यही मदन ,  गोपाल की शरण में चला जाता है ...तब ये  वन्दनीय हो जाता है....फिर निकुँज में काम का अर्थ वासना से नही किया जाता ...यहाँ तो ये प्रेम का ही एक रूप बन जाता है ...प्रेम खेल  में इसका बहुत बड़ा योगदान है ।   

अजी !  इनके ( युगल सरकार ) जैसा रसिक कौन हुआ ?   

इनके जैसा रास किसने किया ?  सम्पूर्ण सृष्टि में रस की जो किंचित ही सही  अनुभूति हो रही है ...वो कहाँ से हो रही है  ?   सृष्टि में आनन्द जो अनुभव में आरहा है  उसका मूल श्रोत कहाँ है ?   प्रेम की भावना से जीव जब भावित होता है और उसे जो तृप्ति मिलती है ...वो प्रेम कहाँ से प्रकट हो रहा है ।   अरे भई !  कहीं तो इनका समुद्र होगा  जहां से ये हमें मिल रहा है ....हाँ है ना !   श्रीवृन्दावन ।  बोलो - श्री वृन्दावन । आया ना रस ?  यहाँ प्रेम का समुद्र है ..यहीं लहराता है ये सिन्धु ...यहीं युगल क्रीड़ा करते हैं ..यहीं रस  रास का रूप लेकर  सर्वत्र रस वितरण करता है ।

यहाँ रसराज विराजमान हैं ..अद्वितीय रसिक हैं ये  , ऐसे न हुये न होंगे ।  

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आज बरसाने में वर्षा हुई है ...रिमझिम वर्षा ...बूँदे  लताओं के  पल्लवों में मोती की भाँति शोभा पा रही हैं...अवनी शीतल हुई है ...मोर अपने पंखों को समेटे हुये हैं  और कभी कभी बोल भी उठते हैं ...और कभी तो पंख फैला कर वर्षा की बूँदों को झाड़ भी रहे हैं । पक्षी अपने चोंच  में जल भर कर अपने घोंसले में जा रहे हैं ।  कोयल बोलती है कभी कभी ...तो वातावरण में और रस घुल जाता है ।  

राधा बाग  तैयार है  श्रीहित चौरासी जी के लिए ।  

आज लोग समय से पूर्व  ही आगये है ....कोई श्रीराधा नाम का जाप कर रहे हैं ....तो कोई  ध्यान कर रहा है ...कोई पदों का गान कर रहा है ...तो कोई माला आदि बनाने में गौरांगी से सेवा माँग रहा है ...तो कोई रसिकों के लिए बिछाबन  बिछा रहा है  ।     

बाबा पधारे हैं ..आज ये मोर कुटी गये थे ...वहीं से आरहे हैं ...मैंने आते ही पूछा ...मोर कुटी में ?  

तो बोले ...पाँच सौ वर्ष के एक महात्मा , जो अभी भी गुप्त रूप से वहाँ वास करते हैं ..उन्हीं के दर्शन करने गया था ....मैं आश्चर्यचकित था ये सुनकर ...किन्तु मैं कुछ नही बोला ।   

बाबा  बैठ गये हैं ....सब लोगों ने अपने अपने स्थान से ही दण्डवत प्रणाम किया बाबा को । 

कुछ देर आज श्रीराधा नाम संकीर्तन हुआ ...ये संकीर्तन अद्भुत था ...सब देह भान भूल कर  श्रीराधामय  हो गये थे ।   

आज दसवें पद का गायन होगा ...श्रीहित चौरासी जी के दसवें पद ......

गौरांगी ने  वीणा सम्भाली ...पखावज और बाँसुरी के  साथ  पद का गायन प्रारम्भ हो गया था ।

बाबा आज स्वयं उच्च स्वर से  पद का गायन कर रहे थे । 

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आजु नागरी किशोर , भाँवती विचित्र जोर , 

                            कहा कहौं अंग-अंग परम माधुरी ।

करत केलि कण्ठ मेलि ,  बाहु दंड गंड-गंड ,

                            परस सरस रास लास मंडली जुरी ।

श्याम - सुन्दरी - बिहार ,  बाँसुरी मृदंग तार , 

                              मधुर घोष नूपुरादि किंकिणी चुरी । 

देखत हरिवंश आलि ,  निर्तनी सुधंग चाल ,

                         वारि फेर देत प्राण देह सौं दुरी ।10 ।

गायन के पश्चात  वाणी जी को सबने रख दिया ।  
नेत्र सबने बन्द कर लिए हैं ....और अब ध्यान ।   इस पद का ध्यान पागल बाबा करायेंगे । 

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                                  !! ध्यान !! 

सुन्दर कुँज है ....सखीगण आज  बहुत सुंदर बन कर बैठी हैं ....सामने युगल सरकार है जो रस मत्तता के कारण  सब कुछ भूले हुए हैं ।     सखीगण गान की तैयारी कर रही हैं ...वाद्य आदि सब सामने हैं ....कोई स्वर बैठा रही है तो कोई ताल ।   सखियों की संख्या सिर्फ आठ नही है ...अनगिनत हैं ..अष्ट सखियों की सखियाँ भी आठ आठ हैं ...फिर उनकी आठ की आठ आठ ....ऐसे अनगिनत हैं ....सब सुन्दर से सुन्दर हैं....यही सखियाँ इतनी सुन्दर हैं कि महालक्ष्मी का सौन्दर्य भी इनके आगे तुच्छ है ...फिर  श्रीराधा रानी की तो बात ही छोड़ दीजिए ।

युगल सरकार के सामने एक जल का छोटा सा फुब्बार है ....उससे और शोभा बन रही है ।

तभी सामने से एक सखी आई  ये हित सखी है ....और इसने आकर युगल सरकार के सामने एक खिला हुआ कमल रख दिया ...ये कमल स्वर्ण के रंग का था इसलिए  युगल को  ये कमल  हित सखी ने भेंट किया था ।     श्याम सुन्दर का ध्यान   अब उस कमल पर ही टिक गया है ...उसकी शोभा  देख रहे हैं  स्वर्ण का कमल देखकर श्याम सुन्दर को अपनी प्रिया श्रीराधा रानी की याद आती है ....तो वो  तुरन्त अपनी प्यारी को निहारने लगते हैं ....प्रिया उनसे संकेत में पूछती हैं ...क्या हुआ ?    तब श्याम सुन्दर उस कमल को दिखाकर कहते हैं ...बिल्कुल आपकी तरह है ये कमल भी ...आपके अंग की जो शोभा है  वैसी ही इस कमल की भी है ...आपके अंग में जो सुगन्ध है वैसी ही इस कमल में भी है ।   ये सारी बातें इन की संकेत में हो रही हैं....किन्तु सखियाँ तो  हृदय की बात जानती ही हैं ...इसलिए इनकी चर्चा  में सखियों को अति आनन्द आ रहा है ।

तभी एक भ्रमर उड़ता हुआ आया और उस कमल में बैठ गया ...और कमल का मकरंद पान करने लगा .....ये देखकर श्याम सुन्दर अपनी प्रिया की ओर देखकर मुस्कुराये .....

बस इनका मुस्कुराना क्या हुआ ...हित सखी ने उस कुँज को ही बदल दिया ....वो कुँज  अब मात्र कमल दल से सज्जित था ....उस कुँज के सोलह द्वार थे   उस द्वार की बनावट में केवल कमल का ही प्रयोग था .....सामने सज्जा थी कमल दल की ....उसी में विराजे थे युगल सरकार ।   

सखियों ने वाद्य बजाने शुरू कर दिये ...मृदंग, बाँसुरी,  वीणा ...तभी सखियों ने सुना कि  मन्द मन्द ध्वनि नूपुर और करधनी की भी आरही है ।     सामने देखा कि  नागरी श्रीराधा रानी नृत्य कर रही हैं ...नृत्य अद्भुत है ...अनुपम है .....पूरा कुँज झूम रहा है .....किन्तु इतना ही नही ....दूसरी और  श्याम सुन्दर भी नृत्य करते हुये इन्हीं के पास आरहे हैं ।      ये झाँकी तो  कभी देखी नही गयी थीं...सखियाँ आनन्द में डूबी हुयी हैं ....और  इनका शतगुना आनन्द तब और बढ़  गया जब इन्होंने इस रहस्य को जाना ....कि दोनों  अब बदल गये हैं ....क्या ?   जी , श्याम,  सुन्दरी हो गये हैं और नागरी , किशोर हो गयीं हैं ....सखियाँ गान करती हैं ....

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आहा ! सखी देख तो ....

आज इन दोनों की जो जोरी है ...वो है तो बड़ी प्यारी ...किन्तु विचित्र है ....इनके अंग की थिरकन देख ...इनके अंग अंग में माधुर्य है ....माधुर्य का रस इनके अंगों से टपक रहा है ।  

पर इस सुन्दर जोरी को तू  विचित्र क्यों कह रही है ?   ललिता सखी ने हित सखी से पूछा । 

तू समझ ,     हित सखी  हंसकर बोली । 

किन्तु इन दोनों का नृत्य इतना  उन्माद पूर्ण और उन्मुक्त था कि  ललिता सखी भी समझ नही पाईं ।

तो हित सखी ने कहा .....नागरी हमारी श्रीराधा रानी  किशोर बनी हैं और  श्याम सुन्दर  सुन्दरी का भेष धारण कर उन्मुक्त नृत्य कर रहे हैं .....ये सुनते ही सब आनंदित हो  तालियाँ बजाने लगीं ....क्यों की सब पहचान गयीं थीं ।   पूरा कुँज  प्रेम के उन्माद से भर गया था । 

सखी देख - दोनों एक दूसरे के कण्ठ में बाहु डालकर ....कभी बाहु से बाहु ....कपोल से कपोल मिलाकर कैसे रास और विलास की अनुपम सृष्टि कर रहे हैं ।   हित सखी कहती हैं ...ये प्रेम की ऊँचाई का दर्शन आज ही हुआ है .....

रास में  संगीत की अपनी भूमिका होती है...पर सखी !  यहाँ तो संगीत भी इन्हीं का चल रहा है .....नूपुर की ध्वनि आहा !   करधनी की ध्वनि !  और कंक़ण की ध्वनि !  हमारे  मृदंग, बाँसुरी वीणा  ये ठीक हैं ...पर इन युगल का संगीत  तो  सृष्टि में  महारस को  प्रवाहित कर रहा है ।   

पर  तभी  नृत्य  पूरी गति से चल पड़ा था .....युगल मत्त  हो गये रस के कारण ....नाना प्रकार से नृत्य कर रहे हैं ये दोनों ....कभी तेज गति तो कभी मन्द गति ....ताल में अपने चरण पटकते हैं , कभी दोनों एक दूसरे में लिपटते हैं ...इस नृत्य गति  में कोई पहचान नही पा रहा अब कि  कौन श्रीराधा हैं और कौन श्याम सुन्दर ।   दोनों ही अब नाचते नाचते एक हो रहे हैं .....

आहा !   इस रास लास्य की  विचित्र झाँकी  देख  हितसखी कहती हैं ..सखियों ! इन युगलवर में  सब कुछ न्योछावर करो ...अपना ये देह और प्राण दोनों ही ...क्यों की ऐसी विचित्र जोरी और ऐसा विचित्र नृत्य  आज तक देखा नही था ।   सच  है सखी !  ये दोनों अद्वितीय रसिक हैं ...ऐसे रसिक न हुये न होंगे ....इतना ही कहा हित सखी  ने  और सब मौन हो गयीं । 

पागल बाबा आज अंतिम में  कहते हैं - 

चन्द्र  मिटे सूरज मिटे , मिटे त्रिगुण विस्तार ।
दृढ़ व्रत श्रीहरिवंश को ,  मिटे न नित्य विहार ।। 

सब मिट जाएगा .....किन्तु ये रस का विहार कभी भी मिटेगा ।  

गौरांगी ने  अब फिर श्रीहित चौरासी जी के इस दसवें पद का गायन किया ....

पूरा राधा बाग गा रहा था ।

“आजु नागरी किशोर , भाँवती विचित्र जोर”..........

आगे की चर्चा अब कल - 

हित चतुरासी जी पद भाव 11 "मंजुल कल कुंज देश"

हित सखी की कृपा - “ मंजुल कल कुंज देस” )

29, 5, 2023

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गतांक से आगे - 

आज आनन्द दुगुना हुआ ...क्यों की बाबा के साथ गहवर वन की परिक्रमा लगाने का भी अवसर हम सबको मिल गया ।  बरसाना में वर्षा हो रही है ...मोर नाच रहे हैं ...पक्षियों के कलरव से वातावरण और मधुर हो रहा है ।   गहवर वन में बैठ कर सब लोगों ने  श्रीहित चौरासी जी का गान किया .....गान में ही सब इतने तल्लीन हो गये कि आगे बढ़ने की कोई सोच ही नही रहा था । कुछ देर बाद  बाबा ही उठे और  आगे चल दिये ...ठीक पाँच बजे श्रीहित चौरासी जी पर कथा होगी ...इसके लिए “राधा बाग” पाँच बजे से पूर्व ही पहुँचना है ।      

“सखी जू के चरण पकड़ लो”.......बाबा  शाश्वत से बोले । 

थोड़ी तेज चाल से मैं बाबा के पास पहुँचा ...तो बाबा चलते चलते शाश्वत को उत्तर दे रहे थे ।

मैंने शाश्वत से धीरे ही पूछा .....प्रश्न क्या था तुम्हारा ?    

उसने मुझ से भी धीरे ही कहा ....”उस दिव्य निकुँज में प्रवेश कैसे हो”? 

देखो ,  अष्ट सखियाँ हैं ना , इनमें से किसी के भी चरण पकड़ लो ...
बस निकुँज में प्रवेश मिल जायेगा ।  बाबा ने फिर पीछे मुड़कर शाश्वत को कहा । 

शाश्वत कुछ कहता कि बाबा फिर बोले ...एक किसी सखी का आश्रय ले लो ..आश्रय लेने का अर्थ है  सबसे प्रथम जब प्रातः भजन ध्यान में बैठो तो उस समय उन सखी का स्मरण करो ..उनसे प्रार्थना करो कि  आप ही हमें निकुँज में प्रवेश दिला सकती हैं ।    

उसी समय गौरांगी भी मेरे पीछे आगयी थी ...वो भी बाबा की बातें सुनने लगी थी ।

सखी चाहें तो किसी को भी प्रवेश दिला सकती हैं ?  ये मैंने पूछा । 

हाँ , किसी को भी , अधम से अधम को भी ......कोई साधना नही है ...बस उसने सखी के चरण पकड़ लिए हैं ....और  बस प्रार्थना ही करता रहता है .....फिर कुछ सोच कर बोले बाबा ....ये बात मैं ऐसे ही नही कह रहा .....मुझे श्रीरंग देवि सखी जू ने प्रवेश दिलाया ।   इतना कहकर बाबा चुप हो गये ....उन्हें लगा कि ये बात नही कहनी चाहिये थी ।    

कुछ देर हम लोग  “राधा राधा राधा” नाम जाप करते हुये  आगे बढ़े ......

फिर तो  राधा बाग  आही गया ।      

सखी जू ही  गुरु रूपा हैं .....उनकी कृपा बिना  श्रीजी की कृपा भी नही मिलती । 

फिर बाबा बोले - अच्छा  सुनो ,   एक लुटेरा था श्रीवृन्दावन में ....उसका नाम था नरवाहन ।  

वो लूटता था ...जो व्यापारियों का माल श्रीवृन्दावन से होकर जाता था तो वो टैक्स लेता था ...पहले तो यमुना जी बहुत बड़ी थीं ....जल भी बहुत था ..पानी जहाज़ चलते थे ..दिल्ली आगरा प्रयाग आदि व्यापारी लोग नाव से ही सामान लेकर आते जाते थे ...तो नरवाहन उन्हें लूटता था ....इसके लोग थे  लुटेरे ...उन सबका सरदार ये नरवाहन राजा कहलाता था । 

श्रीहित सखी के अवतार  श्रीहित हरिवंश महाप्रभु  श्रीधाम वृन्दावन आये .....तो इनके साथ इनकी दो पत्नियाँ और श्रीराधा बल्लभ लाल जू थे ।   ये विवाह इन्होंने भोग वश नही किया था ...एक पण्डित जी थे ...वही अपनी दो बेटियों को इन्हें दे गये ...ये आ रहे थे श्रीवृन्दावन ।

बाबा  राधा बाग आगये...और प्रेम से बैठ गये रज में , जहां बैठते थे ...
श्रोता लोग बैठे हैं ।  पाँच बजने में अभी समय है ।   

हाँ ,  तो मैंने कह रहा था ...उन पण्डित जी के पास थे श्रीराधा बल्लभ लाल ...उन श्रीराधा बल्लभ जू को  लेने के लिए श्रीहित हरिवंश जू ने उन दोनों कन्याओं से विवाह किया ....क्यों की वो पण्डित जी बोले थे ...इनको तो मैं दहेज में ही दूँगा अपनी बेटियों के साथ ।  तो उन कन्याओं से विवाह करके श्रीराधा बल्लभ जी को लेकर  श्रीहित हरिवंश जू आगये  श्रीधाम वृन्दावन ।   उन दिनों श्रीवृन्दावन सच में ही वन था ....टीले बहुत थे ...तो मदन टेर नामक टीले में आकर श्रीहित जू ने  उनके ठाकुर श्रीराधा बल्लभ जू को विराजमान कराया ।     

पागल बाबा बोले - उन दिनों टीलों पर क़ब्ज़ा था नरवाहन का ....क्यों की यमुना में कौन सी नाव जा रही है , कौन सी आरही है ...ये उन के लुटेरे टीले पर चढ़कर ही देखते थे ...श्रीहित हरिवंश जी ही पहले थे जिन्होंने निर्भय होकर मदन टेर ही नही ..आगे आगे के टीले भी ले लिए थे ।     नरवाहन से उनके लोगों  ने कहा ....कोई ग्रहस्थ संत है  ठाकुर जी सेवा करता है ....उसने हमारे सारे टीले क़ब्ज़े कर लिए हैं .....आप कहें तो हम हटा दें । 

नरवाहन ने कुछ सोचकर कहा ...मैं देखता हूँ ।  

नरवाहन गये .....वहाँ देखा तो श्रीहित जू  दिव्य स्वरूप धारण  करके विराजे थे ...उनका गौर वर्ण ...उनकी कान्ति ....उनकी प्यारी मुस्कुराहट ...उनका वो दिव्य आभा मण्डल । उनके अंग से “राधा राधा राधा” नाम प्रकट हो रहा था । नरवाहन देखते रहे ...वो सुध बुध भूलने लगे , उस दिव्य रसपूर्ण नाम के श्रवण से ही ये नरवाहन  श्रीहित जू के चरणों में गिर गये ।   और राधा नाम महामन्त्र उन्होंने प्राप्त किया । 

बाबा बोले -  शिष्य तो श्रीहित जू के कई हैं .....ओरछा के राजगुरु  श्रीहरिराम व्यास जी भी इनके ही शिष्य थे...पर पूर्ण कृपा बरसी  ....नरवाहन के ऊपर ।    

 क्यों ?   शाश्वत ने पूछा ।

क्यों की इसकी कोई गति नही थी .....ये तो लुटेरा था ...दूर दूर तक  मुक्ति की बात छोड़ो स्वर्ग जाने की व्यवस्था भी इसके पास नही थी ...क्यों की पुण्य कुछ था नही ।  इसलिये इन सखी जू ने ....कृपा करके नरवाहन को ......ओह ! सीधे निकुँज में प्रवेश दिला दिया ...ये सखी की कृपा थी क्यों की “हित सखी” यही तो हैं ।

फिर  राधा बाग  को लोगों से भरा हुआ देखा  बाबा ने तो कहा ....श्रीहित चौरासी में  गोसाईं श्रीहित हरिवंश जी के छाप सारे पदों में है ....बस दो पद में  - एक ग्यारहवाँ और बारहवाँ ..में ही “नरवाहन प्रभु” नामकी छाप मिलती है .....जो ये नरवाहन को लेकर हित सखी पहुँच जाती हैं और निकुँज में ,  जाकर  नरवाहन जो दर्शन करते हैं ...आहा !    ये साधन साध्य थोड़े ही है ..निकुँज में प्रवेश ...इसके लिए तो सखी की कृपा चाहिये ....उसके बिना सम्भव नही है । 

इसके बाद बाबा  आज के श्रीहित चौरासी जी  का  ग्यारहवाँ पद   गाने के लिए कहते हैं ...गौरांगी मधुर स्वर से वीणा में गायन करती है ।
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             मंजुल कल कुंज देस,  राधा हरि विशद वेस। 

                         राका नभ कुमुद बन्धु ,  शरद जामिनी ।। 

                  श्यामल दुति कनक अंग ,  बिहरत मिलि एक संग ।

                        नीरद मणि नील मध्य , लसत दामिनी ।।

                  अरुण पीत नव दुकूल , अनुपम अनुराग मूल ।

                     सौरभ जुत शीत अनिल , मन्द गामिनी ।।

                    किसलय दल  रचित सैन , बोलत पिय चाटु बैन ।

                    मान सहित प्रतिपद , प्रतिकूल कामिनी ।।

                   मोहन मन मथत मार ,   परसत कुच नीवी हार ।

                      वेपथ जुत   नेति नेति ,  वदत भामिनी ।।

                 “नरवाहन प्रभु” सु केलि ,  बहु विधि भर भरत झेली ।

                  सौरत रस रूप नदी ,  जगत पावनी ।11 !

मंजुल कल कुंज देश ...............

इस पद  गायन के बाद  बाबा ने नित्य की तरह इसका भी ध्यान कराया ।   

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                                        !! ध्यान !! 

सुन्दर फूलों का कुँज है ....नील मणि के समान तमाल वृक्ष हैं....उसमें सफेद सफेद फूल लगे हैं वो चमकते हैं तो ऐसा लगता है  आकाश में अनगिनत तारे चमक रहे हैं ।  

ऋतु वसन्त है ...और अब सन्ध्या बीत गयी है  रात्रि का आगमन हो रहा है ।  आकाश में चन्द्रमा पूर्ण है ...उस की चाँदनी से  पूरा श्रीवन जगमग कर रहा है ....उस समय जो शोभा हो रही है श्रीवन की .....वो तो बस चिन्तन का ही विषय है ।    

इधर कुँज की शोभा अद्वितीय है ....कुँज पुष्पों से तैयार किया गया है ....उस कुँज में जो पच्चीकारी है वो  भी पुष्पों के कलियों की है ...एक प्रकार से  फूलों का बंगला ही है ।  

कुँज एक नही हैं ...छ कुँज हैं ...एक प्रवेश कुँज है ...वो  पीले कमल का है ...उसके आगे जो कुँज है ...ये सब भीतर ही भीतर हैं .....दूसरे लाल कमल के हैं ....सबमें अलग अलग सुगन्ध है ...जो मादकता फैला रही है ...फिर  नील कमल के ...फिर हरित कमल के ....इस तरह कुँज में कुँज ....प्रत्येक कुँज के द्वार पर परदा है , वो परदा भी कलियों का है ।  

हर कुँज में ...छोटी सी सा जल की बाबडी है ..उसमें भी कमल हैं .....संगीत भौंरे देते हैं ...मोरों को प्रवेश है कुँज में ...ये चारों ओर घूम रहे हैं ।   पक्षियों का कलरव और दिव्यता भर रहा है वातावरण में ।  

अंतिम कुँज में एक सिंहासन है ...वो सिंहासन भी फूलों का ही है ......उसमें सारे रंग के कमल लगे हैं ...कमल दल को सिंहासन में  सजाया गया है उसी में  युगल सरकार बिराजे हैं ।    

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कुँज का स्थान बड़ा ही मनोरम है ....मनोरम से भी मनोरम है ।   क्यों की इस कुँज में श्याम सुन्दर और श्रीराधा रानी विराजमान हैं .....सखी ! देखो , इनके ही ऊपर कैसे  चन्द्रमा की उजियारी फैल रही है ...सीधे चाँदनी इन्हीं के ऊपर बरस रही है ...ये कितना सुन्दर लग रहा है ना ?  

और हाँ , ये सब तो सुन्दर है ही पर इन सबको भी मात दे रहे हैं  श्याम द्युति वाले श्याम सुन्दर और तप्त सुवर्ण के समान अंग वाली श्रीराधा रानी ।    दोनों विहार करते हैं ना तो  जो आनन्द बरसता है वो कह नही सकते ।  विहार करते हुये ऐसा लगता है काले बादलों में बिजली चमक रही है । 

दोनों के वस्त्र भी तो देखो एक ने पीताम्बर ओढ़ के मानों अपनी प्रिया को ही ओढ़ लिया है और जो प्रिया ने ओढ़नी ओढ़ी है  वो ऐसे चमक रही है जैसे श्याम सुन्दर अपनी प्रिया को देखकर आज चमक रहे हैं ।    अब क्या उपमा दूँ ?  अनुराग का जो कन्द है वो ये हैं ...अब इसका वर्णन कैसे हो सकता है ।  सखी ! देख ....शीतल हवा चल रही है यमुना जी का जल भी शीतल हो  गया है ...वातावरण  में शीतलता ही है ....अब जिस कमल दल में ये विराजे हैं ...सखी !  वो भी शीतल है ...पर श्याम सुन्दर को देखो ...वो अपने नयनों से प्रार्थना कर रहे हैं अपनी प्यारी की ।  क्यों ?  दूसरी ने पूछा । इसलिए की इनकी प्यारी आज मान कर रही हैं ....ये मना रहे हैं  पर वो मान नही रहीं ।     ये छू रहे हैं ....पर प्यारी ...ना ना ना  ही करती जा रही हैं ।  

अब मैं समझी !   क्या समझी तू ? 

सखी !   कामदेव को ये  श्याम सुन्दर  रोज मथते थे  ना , पर आज वो इन्हें मथ के चला गया ।  इस बात पर सब हंसी ।

हित सखी के साथ आज नरवाहन सखी भी आई है ....वो इस निकुँज रस को अपने नेत्रों से पीकर उन्मत्त हो गयी है ....वो रस केलि को देखकर उन्मादी हो चली है ....अब वो आगे आई ...और बोली ...हे प्यारी जू !  हरि से केलि करो ।   रस में डुबो दो इन्हें ....तुम तो सुरत रस की सरिता हो ...बहा ले जाओ इन्हें ।  डुबो दो प्यारी जू !  क्यों की यही रस  जग का मंगल करने वाला है ।

ये बात  नरवाहन सखी ने कही थी । 

धन्य हैं ये रसोपासना के आचार्य जिन्होंने सामान्य जीवों पर ये रस बरसाकर कितनी कृपा की .....आपकी कृपा हम पर भी हो .....जय हो जय हो ।

बाबा इतना ही बोले ...गौरांगी ने ग्यारहवें पद का फिर से गान किया ।

“मंजुल कल कुंज देस , राधा हरि विशद वेस.........

आगे की चर्चा अब कल - 
✍️hari sharan 
हरि शरणम् गछामि
🙏श्रीजी मंजरी दास (सूर श्याम प्रिया दास) 

सखि नामावली