Tuesday, August 22, 2023

श्री हित चतुरासी जी पद भाव संख्या 9 चिंतन लीला पद 9

रसिक अनन्य श्याम - “कौन चतुर जुवती प्रिया” ) 

24, 5, 2023

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गतांक से आगे - 

हे कृष्ण ! तुम पूर्ण प्रेमी नही हो सकते ..क्यों की पूर्ण प्रेमी के लिए “अनन्य” होना आवश्यक है । 

रास लीला के मध्य में श्रीकृष्ण  अन्तर्ध्यान हो गये थे ...गोपी गीत सुनाकर इन्हें प्रकट किया गोपियों ने...बहुत बातें हुईं ...दोनों के मध्य शास्त्रार्थ भी हुए. ..हार गये श्रीकृष्ण ...वो बोले ...सच्ची प्रेमिन तो तुम लोग हो ...प्रेम क्या है ये तुमने ही जाना है ।  

“तुम प्रेम में पूर्णता पा भी नही सकते” ...दो टूक कह दिया था गोपियों ने । 

सिर झुका लिया श्रीकृष्ण ने ...तो गोपियाँ बोलीं ...प्रेम के लिए अनन्य होना आवश्यक है ...बिना अनन्यता के कोई प्रेमी बन ही नही सकता ...बन तो सकता है किन्तु अपूर्ण ही रहेगा ।  

श्रीकृष्ण क्या बोलते ...वो चुप रहे ...क्यों की बात सही थी गोपियों की ।

हम हैं प्रेमिन ...हमने प्रेम के लिए सब कुछ त्याग दिया है ...सब कुछ ।    हमारे जीवन में सिर्फ तुम हो ...पर तुम्हारे जीवन में ?   नाना भक्त हैं ....सबकी तुम्हें सुननी पड़ती है ....क्यों की तुम ईश्वर हो ।    हम लाख कहें तुमसे ....कि हम सिर्फ तुम्हारी है ....पर तुम नही कह सकते कि ....हम भी सिर्फ तुम्हारे हैं । 

हाँ रसिक हो तुम ,   तुम भ्रमर हो ....पर  भ्रमर होना  कोई बड़ी बात नही है ....जहाँ फूलों का पराग देखा वहीं बैठ गये ...पी लिया रस ...फिर उड़ चले ।  भक्तों का हृदय कमल है उसमें प्रेम का पराग देखा तो वहीं रुक गये ....फिर दूसरा भक्त ....अनन्त भक्त हैं सृष्टि में तुम्हारे ...देखो कृष्ण !  बड़ी बात है अनन्य होना ।     प्रेम राज्य में आदर भ्रमर का नही होता ...मछली का होता है चातक का होता है ....क्यों की ये अनन्य हैं ।  

गोपियाँ बोलती जा रही थीं ,श्रीकृष्ण बैठ गये ...हाथ जोड़ लिये और कहा ..मुझे अनन्य बनना है ।     

“इसके लिए तो ईश्वरत्व से मुक्ति पानी होगी”....आगे आकर ललिता सखी ने कहा ।

हाँ , मुझे ईश्वरत्व से ही मुक्ति चाहिये ...और तभी  ललिता सखी ने  श्रीराधा रानी के चरणों में लगी महावर अपनी उँगली में ली और श्याम सुन्दर के मस्तक में लगा दिया ...बस  ये तभी से  मुक्त हो गये ईश्वरत्व से ...ये निकुँज के श्याम सुन्दर ...रसिक तो थे ही  अब अनन्य भी हो गये । 

अब ये श्रीराधा रानी के सिवाय किसी को नही देखते ...उन्हीं के रस में मत्त रहते हैं ...उन्हीं में मत्त रहते हैं ...तो ये  विरोधाभास  रसिक और अनन्य ...ये सिर्फ श्याम सुन्दर में हैं , अवतारी कृष्ण में नहीं ...निकुँज विलासी श्याम सुन्दर में ।  

आपको परेशान नही करूँगी ...हे मेरे राधा पति !   हे रसिक !  तुम ही हो जो  राधा के पति हो तो अनन्य  हो ...रस के पियासे हो तो रसिक हो .....तुम काम देव से  मथे गये हो ...अच्छे से मथे गये हो ।  हे राधा पति ! इसलिये मेरे सामने तुम बोलने  में असमर्थ हो ।  इतना कहकर मुस्कुराते हुए वो हित सखी  वहाँ से अपनी  श्रीराधा रानी के पास चली जाती है ।   

आहा !   

। साँची कहौ इन नैनन रंग की ,  दीन्ही कहाँ  तुम लाल  रँगाई । 

जय जय श्री राधे !  जय जय श्री राधे !   जय जय श्रीराधे !

पागल बाबा रसोन्मत्त हो गये ...

गौरांगी ने फिर  इसी चौरासी जी के छटे पद का गायन किया ।

कौन चतुर जुवती प्रिया ,  जाहि मिलत लाल चोर ह्वै रैन........

आगे की चर्चा अब कल - 
✍️हरि शरण जी महाराज
हरि शरणम् गाछामि
🙏श्रीजी मंजरी दास (श्याम प्रिया दास)
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बृज रस मदिरा रसोपासन 1

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