Saturday, August 19, 2023

श्री चतुरासी जी पद संख्या 4 चिंतन चर्चा 04


( “जोई जोई प्यारौ करै”- प्रेमी के चित्त की एकता ) 

19, 5, 2023

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गतांक से आगे - 

सहचरी भावापन्न होकर  प्रातः की वेला में बैठिये ...भाव कीजिये कि - आप श्रीवृन्दावन में हैं ....यहाँ चारों ओर लता पत्र हैं ....यमुना बह रही हैं ...दिव्य  रस प्रवाहित हो रहा है ..जिससे  मन  अत्यधिक आनन्द का अनुभव कर रहा है .....नही नही आपको  आनन्द में अभी बहना नही हैं ..आप तो सहचरी हैं ....सहचरी कभी भी अपना सुख ,अपना आनन्द  नही देखती ...जो अपना सुख देखे वो तो इस  “श्रीवृन्दावन रस” का अधिकारी ही नही है ..आपको ये बात अच्छे से समझनी है , हमारा सुख  , जो हमारे प्रिया प्रियतम हैं उनको सुख देने में है ..यही इस रसोपासना का मूल सिद्धान्त है ।     

राधा बाग  आप प्रफुल्लित है ...हो भी क्यों नहीं ....प्रेम की गहन बातें आज प्रकट होने वालीं हैं ....वैसे प्रेम के गूढ़ रहस्य को इन बृज के लता पत्रों से ज़्यादा कौन समझेगा ?      यहाँ की भूमि प्रेम से सींची गयी है .....युगल वर ने ही सिंचन किया है ।    प्रातः की वेला है ....सब प्रमुदित हैं.......पागल बाबा ध्यान में बैठे हैं .....गौरांगी वीणा के तारों को सुर में बिठा रही है ...शाश्वत  बाग में पधारे साधकों को “श्रीहित चौरासी जी” बाँट रहा है ..ताकि वो सब भी साथ साथ में गायन करें ।    कुछ लोग बम्बई से आए हुए हैं ....कौतुक सा लगा तो राधा बाग में आगये ...पर शाश्वत ने उन्हें बड़े प्रेम से कहा ....ये सत्संग आप लोगों के लिए नही है .....क्यों !  हिन्दी में नही बोलेंगे महाराज जी ?     इस पर शाश्वत  का उत्तर था ...उनकी भाषा ही अलग है ...जिसे  आप नही समझ पायेंगे । उन लोगों को भी कोई आपत्ति नही थी ...क्यों की वो लोग कौतुक देखने आये थे ...पर यहाँ कौतुक की बात नही ...प्राणों की बाज़ी लगाने की बात थी ...”जो शीश तली पर रख न सके वो प्रेम गली में आए क्यों “ । 

“आप लोग भी अगर पाश्चात्य की छूछी नैतिकता के तथाकथित विचार से बंधे हैं तो कृपा करके उठ जाइये” ..शाश्वत अन्यों को भी हाथ जोड़कर कहता है ......

“क्यों कि ये दिव्य प्रेम की ऊँची बात है “ ।

अब पागल बाबा  नेत्र खोलकर गौरांगी की ओर देखते हैं ....उसे संकेत करते हैं ....कि श्रीहित चौरासी जी का प्रथम पद  गायन करो ....और वीणा में अपने सुमधुर कण्ठ से  गौरांगी गायन शुरू करती है ............पूरा राधा बाग झूम उठता है । 
.....तो  प्यारे ने मेरे ऊपर अपने कोटि कोटि प्राण न्यौछावर कर दिये हैं ....सखी इससे ज़्यादा मैं कुछ कह नही सकती .....अच्छा ! सखी !   इस बारे में कुछ तो तू बोल ....श्रीराधा जू ने जब अपनी हित सजनी से कुछ कहने के लिए कहा ....तो सखी इतना ही बोल सकी ....हे गोरी और हे श्याम !   आप दोनों  दो थोड़े ही हैं ...एक हैं ...जब एक हैं तो देह , मन , और आत्मा अगर एकत्व की बात करते हैं तो इसमें आश्चर्य क्या ?     मेरी भोरी प्रिया जू !  आप दोनों तो प्रेम पयोधि रूप मान सरोवर के हंस हंसिनी हो .....आप तो जल और तरंग की तरह एक हो ...अब हे श्रीराधिके !   आप ही बताओ ...क्या जल से तरंग को अलग किया जा सकता है ?   या तरंग को जल से अलग कर सकती हो ?   आप दोनों एक हो ।   

आहा !  क्या वर्णन है .....”मैं जो चाहती हूँ प्यारे वही करते हैं ...और प्यारे जो करें वो मुझे अच्छा लगता है”.......पागल बाबा के नेत्रों से अश्रु बह चले .....दोनों एक दूसरे के लिए हैं ...श्रीराधा जी को अपने तन मन प्राण से भी ज़्यादा प्रिय हैं  श्याम सुन्दर तो ....श्याम सुन्दर तो अपने  प्राणों को ही श्रीराधा जी में वार चुके हैं .....पागल बाबा  इससे ज़्यादा कुछ बोल नही पाये ।    हाँ  इतना अवश्य बोले  कि देखो ...दो चित्त की एकता ....यही है प्रेम , ....सब अच्छा लगे  उसका ।

दोनों प्रेम हैं , और दोनों प्रेमी ...दोनों चातक हैं  तो दोनों स्वाति बूँद । 
दोनों बादल तो दोनों बिजली ....दोनों ही कमल हैं और दोनों ही भ्रमर हैं ...दोनों ही लोहा हैं तो दोनों ही चुम्बक हैं ...दोनों आशिक़ हैं तो दोनों महबूब हैं ।

दो हैं , दिखते दो हैं .....पर हैं एक ।

“जोई जोई प्यारो करैं......”

फिर सबने एक बार और इस  प्रथम पद का गान किया । 

आगे की चर्चा अब कल - 

हरि शरणम् गछामि

✍️श्रीजी मंजरी दास (श्रीजी सूर श्याम प्रिया मंजरी) 

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बृज रस मदिरा रसोपासन 1

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