कृष्ण प्रेमगीता
(भाग ३ )
कृष्ण अपनी राधा की दिव्यता का वर्णन कर रहे है..... अस्तित्व खुद अपना परिचय करा रहे है.... रानियां ध्यान से सुन तो रही है पर कुछ कुछ समझ नही पा रही है.... मनुष्य जन्म लेने पर देवता भी अपना अस्तित्व भूल जाते है .... ये रानियां भी भूल चुकी है.... की परब्रम्ह की पत्नियां बनने का सौभाग्य ऐसे ही थोड़ी मिला है इनको.... पर अब तो ये साधारण पत्नियां ही है.... एक रानी ने बीच में टोकते हुए कहा ," नाथ क्षमा करे पर सरल भाषा में बताने की कृपा करे... ये ब्रह्म और ये आल्हादिनी ये सब नहीं समझ पा रही है... यहां तो आपकी और राधा की बात हो रही है ना...!"
कृष्ण मुस्कुराए और बोले अच्छा ठीक है.... ब्रह्म कोन है?? ब्रह्म यानी, मैं कृष्ण हूं... कृष्ण क्या है ?? कृष्ण है प्रेम तत्व .... और प्रेम का स्वरूप है राधा....
इसका सरल भाव यही है की ब्रह्म कृष्ण रूपी शरीर है तो इस शरीर को चलाने वाली आत्मा प्राण शक्ति है राधा.... और सिर्फ कृष्ण को ही नही हर प्राणी मात्र मेरा ही अंश है और उनमें जो प्रेम का भाव है तो उनमें भी है राधा....
जो कृष्ण से प्रेम करे उस हृदय में है राधा .... राधा के अस्तित्व के बिना प्रेम नही और जहा प्रेम ना हो वहा कृष्ण केसे मिले.... मेरे सारे भक्त , प्रेमी, मेरे परिकर जो मुझसे अनंत प्रेम करते है ये श्री राधा की ही कृपा है.... राधा के बिना कृष्ण से प्रेम संभव ही नहीं....
कृष्ण को पाने का सरल मार्ग है श्री राधा... जिनके हृदय में राधा हो उनको मैं हृदय में स्थान देता हूं....
राधा कृष्ण की पहचान है... राधा से ही कृष्ण का अस्तित्व है... राधा ने ही कृष्ण के हृदय में प्रेम तत्व की ज्योती जलाकर कृष्ण को कृष्ण से मिलाया है.... द्वारिकाधीशने अपनी आंखे बंद कर ली अश्रु बहने लगे थे बंद आंखों से... आत्माराम अपनी आत्ममे कुछ क्षण लीन हो गए थे.... सारी रानियां उनकी और देख रही थी मानो उनकी भी आज समाधि लग गई थी... रूक्मिणी के भी अश्रु बह चले थे...भाव से भर गई थी...
(शेष भाग कल)