Friday, October 30, 2020

कृष्ण प्रेम दर्शन भाव कथा krishna lovly story


आज  के  विचार

 (  भाव राज्य की दिव्य झाँकी )


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 मुझे दही बहुत प्रिय है .....पर में खा नही सकता था .....क्यों की सर्दी हो जाती थी ....एलर्जी है .......सिर दूखता था  ।

 पर  अभी में   खूब एन्टीबायोटिक दवा ले रहा हूँ इसलिये ये दिक्कत अभी आएगी नही........ सुबह ही 5 बजे उठकर  स्नानादि से निवृत्त होकर  ......ठाकुर जी की सेवा में बैठ गया ..... ...दवाई लेनी है .....इसलिये  खाली पेट  उचित नही होगा .......मैने ही कहा रोटी  और दही  लेकर लाओ......बढ़िया जमी हुयी मलाई वाली दही लाये..... ..मैने  बड़े प्रेम से ठाकुर जी को भोग लगाया .......दही !

 दही अच्छी थी .........मीठी जमी थी .......सेंधा नमक डालकर  ।

 कन्हैया  को भी दही प्रिय है .......कुछ ज्यादा ही प्रिय है  ..........ये विचार आते ही मेरी आँखें बन्द हो गयीं  अपनें आप   ...........

 और मैं कब  भाव राज्य में चला गया   मुझे पता नही चला  ।

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 कन्हैया उठ ! देख तो कितनी धूल लगी है तेरे अंगों में .......

 मैया यशोदा  नें देखा.........हाथ की रोटी फेंक दी है कन्हैया ने .........और  धरती में   उलटा लेट गया है .....और  रो रहा है .... ......हाथ पाँव फेंक रहा है ।

 बहुत छोटा है कन्हैया  इस समय ..........अभी  अच्छे से बोल भी नही पाता ...........हाँ दो चार शब्द सीख लिया है .....मैया... ....गैया......दाऊ ... बाबा  और  रोटी,    बस इतना ही बोल पाता है ये  ।

 धूल से सना हुआ है ............नीला रँग अंग का है .........घुँघराली अलकों में बृज रज लगा हुआ है.........काजल लगे नयनों में  आँसू की बूँदें झिलमिला रही हैं ..........वह  अपनें लाल लाल चरण और हाथ  उछाल रहा है ..........।

 मैया यशोदा बगल में बैठी है  और  पुचकार रही है ........गोद में लेनें के लिये उठाती है ......पर जैसे ही उसे  छूती है ......वो और जोर से  रोना शुरू कर देता है ..............

 लाला ! हुआ क्या बता तो ...............गोद में लेना चाहती है  मैया .......पर  वो  मुँह नोच देता है मैया का ........बालों को खींचता है  ।

 अच्छा ! अच्छा ! फिर  छोड़ देती है  धरती पर  मैया ......ये जिद्दी भी तो बहुत है ......आस पास  काम कर रही  सारी गोपियाँ  आकर खड़ी हो गयी हैं........वो मुग्ध हैं   उनके आनन्द की सीमा नही है .....मैया यशोदा के भाग्य की सराहना कर रही हैं .............ऊपर  नारद जी खड़े हैं आकाश में.....ब्रह्मा  रूद्र    इंद्र  सब खड़े हैं   और गदगद् हो रहे हैं  ।

 तेनें रोटी खाई  ? मैने तेरे लिये रोटी दी थी ............

 सिर हिलाकर  कन्हैया नें कहा .......नही  !

 अच्छा रूक  अभी लाती हूँ  रोटी तेरे लिये ............मैया गयी ........दो बढ़िया रोटी बनाकर .....उसमें दही की मलाई लगाकर ...... ..ले आयी ।

 ले लाला ! खा  ! मैया के हाथों से  रोटी लेतो ली .......पर दोनों हाथों में रोटी लेकर  खाया नही  ।

 दाऊ ! दाऊ ! तोतली बोली में बस इतना ही बोला  ।

 क्या हुआ ? क्या किया दाऊ नें  ? मैया नें  पुचकारते हुए पूछा ।

 रोटी...........कन्हैया नें  यही  कहा   ।

 मैया नें इधर उधर देखा तो पहले की दी हुयी   रोटी धरती में   पड़ी हुयी थी  ........

 अच्छा ! मेरे  लाला की रोटी छीन ली  दाऊ नें  .........अभी बताती हूँ .........इतना कहकर  मैया यशोदा नें   आवाज दी ......दाऊ !

 पर दाऊ नें सुनी नही ........वो दूर खेलता ही रहा .......फिर आवाज दी ...इस बार जोर से आवाज लगाई थी  .....दाऊ  !

 दाऊ नें सुनी .....वो दौड़ा ............और कन्हैया को रोता देखा तो  और तेज़   दौड़ा   ।

 कन्हैया खुश हो गया ............बैठ गया  .........दाऊ को अपनें सामनें बिठाया ..........और  अपनें हाथों से रोटी खिलानें लगा  ।

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 हुआ ये था पहले ........की मैया नें  दो रोटी बनाकर  एक दाऊ को और एक कन्हैया को  दही की मलाई लगाकर दे दी थी...........

   हाथ  में रोटी लेकर चल दिए थे .......दाऊ नें  तो  तुरन्त ही रोटी खा ली थी ........पर  कन्हैया नें   दाऊ को पकड़ कर अपनें सामनें बिठा लिया था ....... ..और दाऊ के मुख में रोटी देनें लगा था ........दाऊ  अपनें हाथो से रोटी खाना चाहता था .......पर कन्हैया की जिद्द थी  कि ......दाऊ रोटी को हाथ भी न लगाये ........और मेरे हाथों से रोटी मुँह में ले  और एक बार  बस दाँत से काटकर रोटी तोड़े   ।

 पर दो टूक  दाऊ नें हाथ से  कन्हैया की रोटी तोड़ी  और अपनें मुँह में डाल लिया .......बस.....कन्हैया नें रोटी फेंक दी  और रोना शुरू......धरती पर लोट पोट  ।

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 अब कन्हैया के हाथों में दो रोटी हैं.....वह दाऊ के सामने जम कर बैठ गया है  .....आलती पालथी मार कर बैठा है ......अब कन्हैया खुश है ....उसके अधरों पर मुस्कान है.....और पलकों पर आँसू उलझे हुए हैं ।

 इस बार दोनों हाथों से  दोनों रोटी  एक साथ  दाऊ के मुख में दे रहा है  कन्हैया  ..........जब दाऊ  हाथों से  लेना चाहता है .....तब  कन्हैया  उसके  हाथों को हटा देता है  ... .......और अपना सिर हिलाता है जोर से इधर उधर .......यानि ऐसा करनें के लिये मना करता है ।

 तभी एक गोपी नें  आकर  बढ़िया दही रख दी ...........दही बढ़िया है ....मीठी है  और मलाई दीख रही है ................ ..अब तो कन्हैया नें दाऊ के मुख में दही मल दी ........दाऊ   चिल्लाया  - मैया !

 और कन्हैया खिलखिलाते हुए भागा     ।

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 दवाई खानी है ........एक घन्टे भर हो गए भोग लगाये हुए   अब तो उतार लो ...........मेरी दीदी नें आकर कहा .......

 मैं  अब उस भाव राज्य से नीचे उतरा था .........

 दही को मैने देखा .........रोटी  को भी  ।

 आनन्द आगया......मैने भोग उतार कर .......जल्दी  ही  रोटी और दही को पाया .....मुझे भाव  आरहा था   कन्हैया के जूठन का.....ओह !

 ( साधकों !  चिन्तन  ऊँची स्थिति है ......और लीला चिन्तन  सहज हो ......यही भक्तों की सिद्धावस्था है .........आप को भी इसी तरह लीला चिन्तन करना है ... ....इसलिये मैं ये सब लिख रहा हूँ  )
 जय श्री हरिवंश (आपको यह भाव कैसा लगा coments कर के बताए या हमे व्हाट्सएप करे 9711592529 पर साथ जुड़नेके लिए यहाँ subscribe करे व व्हाट्सएप करे ) राधे राधे 🙏🙏

Wednesday, October 21, 2020

aarti pritam pyari ki lyrics in hindi

आरती प्रीतम प्यारी की,
कि बनवारी नथवारी की।

दुहुँन सर कनक-मुकुट झलकै,
दुहुँन श्रुति कुण्डल भल हलकै,
दुहुँन  दृग प्रेम सुधा छलकै,
चसीले बैन, रसीले नैन, गँसीले सैन,
दुहुँन मैनन मनहारी की॥

दुहुँनि दृग चितवनि पर वारि,
दुहुँनि लट-लटकनि-छवि न्यारी,
दुहुँनि भौं-मटकनि अति प्यारी,
रसन मुख पान, हँसन मुस्कान, दसन दमकान,
दुहुँनि बेसर छवि न्यारी की॥

एक उर पीताम्बर फहरै,
एक उर नीलाम्बर लहरै,
दुहुँन उर लर-मोतिन छहरै,
कंकनन खनक, किंकिनिन झनक, नुपूरन भनक,
दुहुँन रुनझुन धुनि प्यारी की॥

एक सिर मोर-मुकुट राजै,
एक सिर चुनरी-छवि छाजै,
दुहुँन सिर तिरछे भल भ्राजै,
संग ब्रज बाल, लाडिली-लाल, बाँह गाल दाल,

बृज रस मदिरा रसोपासन 1

आज  के  विचार 1 https://www.youtube.com/@brajrasmadira ( चलहुँ चलहुँ  चलिये निज देश....) !! रसोपासना - भाग 1 !!  ***************************...