राधा राधा रटत है आक ढाक और केर
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वृंदावन में यमुना जी के तीरे एक व्यक्ति बैठे थे ! विचार मग्न थे ! दिन में नाम की महिमा का बखान सुन कर आ रहे थे ! सोच रहे थे क्या सत्य में नाम में इतनी शक्ति होती है ? (अविश्वास वो सबसे पहला भाव है जो मन में आता है ऐसी कथा सुन कर!)
बैठे बैठे निद्रा छा गई !
अर्ध रात्रि के आस पास चारों ओर शांति थी ! कोई चहल पहल नहीं ! कर्ण पुटी में आवाज आने लगी "राधा कृष्ण राधा कृष्ण राधा कृष्ण राधा कृष्ण राधा कृष्ण राधा कृष्ण ।।।।।,,"
निरंतर जप चल रहा था ! व्यक्ति चारों ओर देखने लगे सोच कर कोई संत आस पास भजन कर रहे है ! वहां कोई नहीं था !
उठे थोड़ा इधर उधर देखने को ! कोई नही था ! रात भर कौतुकी मन अनुसंधान में लगा रहा किंतु कोई मिला नही ! प्रातः काल सूर्योदय से पहले कुछ संत स्नान को आने लगे ! एक संत ने उत्सुक सज्जन को देखा और मुस्कुराते हुए बोले "क्या बात है बेटा इतने परेशान क्यों हो ? क्या खो गया तुम्हारा ?"
सज्जन बोले बाबा रात भर से परेशान हूं लगातार राधा कृष्ण सुन रहा हूं किंतु ये आवाज कहां से आ रही है पता नही चल रहा !"
बाबा बोले "बेटा बृंदाबन नाम सिद्ध संतों से अटी है ! बृंदाबन की भूमि स्वयं नाम जप करती है ! इसमें भला क्या अचरज ! कान लगा धरती पर और सुन !"
जैसे ही व्यक्ति ने धरती पे शीश रखा और कान ने बृन्दाबन की रज को स्पर्श किया तो वो नाम जप जोर से और स्पष्ट रूप से सुनाई देने लगा !
संत ने बताया यहां एक महान वैष्णव संत ने समाधि ली थी जो निरंतर जप में लीन रहते थे ! बाबा तो नित्य निकुंज सेवा में चले गए किंतु उनकी देह आज भी पिछले ७० से ८० सालों से नाम जप में ही लीन है ! ये कोई आश्चर्य नहीं !
चलो माँ को प्रणाम कर स्नान कर लो फिर भोग आरती के बाद प्रसाद पा कर जाना !
यह सत्य है । कोई भी इसको आज भी महसूस कर सकता है
वृन्दावनबिहारीलाल की जय!!!
जय जय श्री राधे!!!
✍️श्रीजी मंजरीदास (बृजभाव )
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