Monday, December 6, 2021

संत की संगती का फल

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*संत की संगति का फल*


एक बार एक बहुत प्रसिद्ध चोर किसी के बंगले पर चोरी करने गया. उस दिन वहाँ पर एक संत भागवत् कथा कर रहे थे. जब चोर वहाँ पहुँचा तो प्रसंग चल रहा था कि माँ यशोदा श्री कृष्ण और बलराम को हर रोज़ गहने पहनाती और वह दोनों भोजन करने के बाद गाय चराने जाते. 

संत भाव विभोर होकर श्री कृष्ण की मणि और गहनों का  वर्णन कर रहे थे कि वह बहुमुल्य है, अनमोल है. चोर का ध्यान चोरी से हट गया और वह सोचने लगा कि इस संत से उन दिनों भाईयों का पता पूछ लेता हूं कि दोनों भाई कौन से स्थान पर गाय चराने जाते हैं ? मैं उनके गहने छीन लूंगा और मालामाल हो जाऊँगा.

श्री कृष्ण की लीला देखिये उस चोर ने पहले कभी भी भक्ति भाव के प्रसंग सुने ही नहीं थे क्योंकि उसकी संगति ही चोर उचक्को ं की थी. वह तो बस चोरी - छीना झपटी, और मार काट ही जानता था.

अब वह संत की प्रतीक्षा करने लगा कि कब वह इस सुनसान रास्ते से गुजरे और मैं दोनों बच्चों का पता पूछ सकू. संत को आते देख चोर ने उन्हें चाकू दिखाया और कहने लगा कि उन दोनों बच्चों का पता बता जिन के बारे में तुम बंगले में बता रहे थे कि उनके गहनों का मुल्य तो अनमोल है.

संत ने समझाना चाहा कि भाई मैं तो भागवत् कथा का प्रसंग सुना रहा था. लेकिन संत को लगा कि यह ज्ञान की बातें इस मूढ को समझ नहीं आएगी क्यों कि उसके दिमाग में गहनों का ही ख्याल घूम रहा था. ऊपर से संत को चाकू का भी डर सता रहा था. 

संत ने जान बचाने के लिए कहा कि वृंदावन चले जाओ वहाँ दोनों भाई सुबह गाय चराने आते हैं .वहां तुम उनसे मिल लेना. चोर जाते - जाते संत से कह गया कि मैं गहनों में से आपको आपका हिस्सा दे दूंगा.

अब जैसे - तैसे वृन्दावन पहुँचा. उस समय शाम होने वाली थी. उसने लोगों से पूछा कृष्ण बलराम गाय कहाँ चराते है. लोगों ने भी सरल भाव से वह स्थान बता दिया . 

श्री कृष्ण की माया देखिये पूरी रात उसे नींद नहीं आई. रात भर भूख प्यास की कोई सुध नहीं. मन में एक ही उत्सुकता की दोनों के अनमोल गहने लेने है  . पूरी रात कभी पेड़ पर चढ़े कभी उतरे, कभी रास्ता देखे कि दोनों भाई कब आएगे. अनजाने में ही सही मन में कृष्ण कृष्ण की धुन चल रही है कब आओगे कब आओगे.

सुबह हुई तो उत्सुकता ओर बढ़ गई. फिर उसे एक आलोकिक प्रकाश दिखाई दिया और दो बालक दिखाई दिए. वह एक टक दोनों को निहारने लगा. सोचने लगा कि ऐसा मनमोहक रुप आज से पहले कभी नहीं देखा.

तभी उसे स्मरण आया कि मुझे तो इनके गहने लेने है और उसमें से संत जी को भी हिस्सा देना है. वह जैसे ही श्री कृष्ण और बलराम को धमाका कर गहने छीनने लगा. प्रभु का वह स्पर्श उसे बहुत ही आलोकिक लगा. प्रभु ने अपनी इच्छा से उसे गहने ले जाने दिये. 

फिर से वह उन संत जी की प्रतीक्षा करने लगा. संत जी के आते ही कहने लगा कि अपना हिस्सा ले ले. मैं दोनों बालकों के गहने ले आया हूँ. संत जी हैरान परेशान अरे !भाई तू किन बालकों के आभूषण ले आया है ? भूल गए क्या? कृष्ण और बलराम का पता आप ने ही तो बताया था. मैंने बालकों से उनका नाम पूछा था. उन्होंने ने अपना नाम कृष्ण और बलराम ही बताया था.

संत जी कहने लगे कि मुझे भी उन बालकों से मिलना है. मुझे भी ले चलो . दोनों उस स्थान पर पहुँचे .चोर को दोनों दिखे संत जी को नहीं दिखे. चोर ने श्री कृष्ण और बलराम से कहा कि आप संत जी को क्यों नही दिख रहे? आप को उन्हें भी दिखना पड़ेगा नहीं तो वो मुझे झूठा कहेंगे. भक्त की जिद्द के कारण प्रभु ने संत जी को भी दर्शन दिए.

संत जी कहने लगे कि प्रभु मैं तो कई सालों से भागवत् कथा कर रहा हूँ. लेकिन आप ने मुझे कभी दर्शन नहीं दिए  . जबकि चोर तो आपके नाम की महिमा और रूप के बारे में कुछ जानता भी नहीं था. फिर उसे दर्शन क्यों दिए? प्रभु ने कहा क्यों कि तुम ने मुझे कभी उस भाव से पुकारा ही नहीं.

प्रभु कहने लगे कि अनजाने में ही सही उसे संत के कहे हुए वचनों पर दृढ विश्वास था. चाहे वो मेरे बारे में कुछ नहीं जानता था लेकिन ईश्वर को पाने के लिए जो व्याकुलता होनी चाहिए. उस समय उस में वही थी. कभी पेड़ पर चढ़ता कभी उतरता और उसके मन में मेरे नाम की ही धुन चल रही थी. इस लिए मैं उस पर रीझ गया और उसके समीप आ गया. संत की संगति का यही तो परिणाम होता है.

अब चोर भी संत की संगति में श्री कृष्ण का परम भक्त बन गया क्योंकि अब वह श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त कर चुका था.

जय श्री कृष्णा.

Sunday, December 5, 2021

the company of sant

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 *The fruit of the company of the saint*


 Once a very famous thief went to steal someone's bungalow.  On that day a saint was reciting Bhagwat Katha there.  When the thief reached there, the incident was going on that Mother Yashoda used to wear ornaments to Shri Krishna and Balaram every day and both of them would go to feed the cow after having their meal.

 The saint was describing the gems and ornaments of Shri Krishna with a feeling that it is precious, priceless.  The thief's attention was diverted from theft and he started thinking that I ask this saint the address of the brothers in those days, at which place the two brothers go to graze the cow?  I will snatch their jewelry and get rich.

 Look at Shri Krishna's leela, that thief had never heard the episodes of devotion before because it was only his company that used to steal thieves.  He only knew how to steal, snatch and kill.

 Now he started waiting for the saint when he would pass through this deserted road and I could ask the address of both the children.  Seeing the saint coming, the thief showed him the knife and said that tell the address of those two children about whom you were telling in the bungalow that the value of their ornaments is priceless.

 The saint wanted to explain that brother, I was narrating the story of Bhagwat.  But the saint felt that this idiot would not understand these things of knowledge because the thought of jewelry was roaming in his mind.  From above, the saint was also afraid of the knife.

 To save his life, the saint said that go to Vrindavan, there both brothers come in the morning to graze the cow. There you meet them.  The thief went and told the saint that I will give you your share of the jewellery.

 Now somehow he reached Vrindavan.  It was going to be evening at that time.  He asked the people where Krishna Balaram grazes the cow.  People also told that place in a simple way.

 Look at Shri Krishna's illusion, he could not sleep the whole night. He didn't care about hunger and thirst throughout the night.  There is only one eagerness in the mind to pick up the precious jewels of both.  Sometimes climbed the tree all night, sometimes descended, sometimes saw the way to see when both the brothers would come.  Unknowingly, the tune of Krishna Krishna is playing in the right mind, when will you come, when will you come.

 When morning came, the curiosity increased further.  Then he saw a celestial light and two children appeared.  He looked at both of them at a glance.  Started thinking that I had never seen such an adorable look before today.

 That's when he remembered that I have to take their ornaments and give a share to the saint ji as well.  As soon as he banged Shri Krishna and Balaram, he started snatching the jewelry.  He found that touch of the Lord very ethereal.  Lord willingly let him take away the jewellery.

 Again he started waiting for those saints.  As soon as the saint came, he started saying that take your share.  I have brought ornaments of both the children.  Sant ji is shocked and disturbed! Brother, which children's jewelery have you brought?  Have you forgotten?  You had told the address of Krishna and Balaram.  I asked the boys their names.  He told his name to be Krishna and Balarama only.

 The saint started saying that I too have to meet those children.  Take me too  Both reached that place. The thief saw both of them and the saint did not see them.  The thief said to Shri Krishna and Balaram that why are you not seeing the saint?  You have to see them too or else they will call me a liar.  Due to the stubbornness of the devotee, the Lord also appeared to the saint.

 The saint started saying that Lord, I have been doing Bhagwat Katha for many years.  But you never saw me.  Whereas the thief did not even know anything about the glory and form of your name.  Then why did you see him?  Lord said because you have never called me in that spirit.

 The Lord started saying that unknowingly, he had firm faith in the words of the saint.  Even though he didn't know anything about me, but what should be the distraction to find God.  She was in him at that time.  Sometimes he climbed the tree and sometimes descended and the tune of my name was playing in his mind.  So I got angry on him and came near him.  This is the result of the company of a saint.

 Now the thief also became the ultimate devotee of Shri Krishna in the company of the saint because now he had received the grace of Shri Krishna.

 Hail lord krishna.
 

Friday, December 3, 2021

भागवत चिंतन गीता जी अध्याय 8

Bhagvad Gita as it is in hindi Adhyay 8 तात्पर्य से कुछ चुने शब्द 

भौतिक शरीरों को छह अवस्थाओं से निकलना होता है – वे उत्पन्न होते हैं, बढ़ते हैं, कुछ काल तक रहते हैं, कुछ गौण पदार्थ उत्पन्न करते हैं, क्षीण होते हैं और अन्त में विलुप्त हो जाते हैं | यह भौतिक प्रकृति अधिभूत कहलाती है | 

परमेश्र्वर का विराट स्वरूप की धारणा, जिसमें सारे देवता तथा उनके लोक सम्मिलित हैं, अधिदैवत कहलाती है |

प्रत्येक शरीर में आत्मा सहित परमात्मा का वास होता है, जो भगवान् कृष्ण का अंश स्वरूप है |

भगवान चैतन्य ने उपदेश दिया है कि मनुष्य को वृक्ष के समान सहिष्णु होना चाहिए (तरोरिवसहिष्णुना) | हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे | हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे – का जप करने वाले व्यक्ति को अनेक व्यवधानों का सामना करना पड़ सकता है | तो भी इस महामन्त्र का जप करते रहना चाहिए, जिससे जीवन के अन्त समय कृष्णभावनामृत का पूरा-पूरा लाभ प्राप्त हो सके |

निस्सन्देह मनुष्य के जीवन भर के विचार संचित होकर मृत्यु के समय उसके विचारों को प्रभावित करते हैं, अतः उस जीवन से उसका अगला जीवन बनता है | अगर कोई इस जीवन में सतोगुणी होता है और निरन्तर कृष्ण का चिन्तन करता है तो सम्भावना यही है कि मृत्यु के समय उसे कृष्ण का स्मरण बना रहे |

भगवान् यह नहीं कहते कि कोई अपने कर्तव्यों को त्याग दे | मनुष्य उन्हें करते हुए साथ-साथ हरे कृष्ण का जप करके कृष्ण का चिन्तन कर सकता है | इससे मनुष्य भौतिक कल्मष से मुक्त हो जायेगा और अपने मन तथा बुद्धि को कृष्ण में प्रवृत्त करेगा | कृष्ण का नाम-जप करने से मनुष्य परमधाम कृष्णलोक को प्राप्त होगा, इसमें कोई सन्देह नहीं है |

इस श्लोक में भगवान् कृष्ण अपने स्मरण किये जाने की महत्ता पर बल देते हैं | महामन्त्र हरे कृष्ण का जप करने से कृष्ण की स्मृति हो आती है | भगवान् के शब्दोच्चार (ध्वनि) के जप तथा श्रवण के अभ्यास से मनुष्य के कान, जीभ तथा मन व्यस्त रहते हैं |

बुद्धिमान मनुष्यों को चाहिए कि व्यर्थ के तर्कों तथा चिन्तन से दूर रहकर वेदों, भगवद्गीता तथा भागवत जैसे शास्त्रों में जो कुछ कहा गया है, उसे स्वीकार कर लें और उनके द्वारा सुनिश्चित किए गए नियमों का पालन करें | 
निरन्तर कृष्णभावनामृत में लीन रहने के कारण शुद्ध भक्त भगवत्कृपा से मृत्यु के समय योगाभ्यास के बिना भगवान् का स्मरण कर सकता है | इसकी व्याख्या चौदहवें श्लोक में की गई है |

ब्रह्मचर्य के बिना आध्यात्मिक जीवन में उन्नति कर पाना अत्यन्त कठिन है | अतः इस कलियुग के लिए शास्त्रों के आदेशानुसार भगवान् चैतन्य ने घोषणा की है कि भगवान् कृष्ण के पवित्र नाम – हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे | हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे – के जप के अतिरिक्त परमेश्र्वर के साक्षात्कार का कोई अन्य उपाय नहीं है |

भक्तियोग में भक्त कृष्ण के अतिरिक्त और कोई इच्छा नहीं करता | शुद्धभक्त न तो स्वर्गलोक जाना चाहता है, न ब्रह्मज्योति से तादात्म्य या मोक्ष या भवबन्धन से मुक्ति ही चाहता है | शुद्धभक्त किसी भी वस्तु की इच्छा नहीं करता | चैतन्यचरितामृत में शुद्धभक्त को निष्काम कहा गया है | 

तथा गीता में भी (१०.१०) कहा गया है – ददामि बुद्धियोगं तम् – ऐसे भक्त को भगवान् पर्याप्त बुद्धि प्रदान करते हैं, जिससे वह उन्हें भगवद्धाम में प्राप्त कर सके |

चूँकि यह नश्र्वर जगत् जन्म, जरा तथा मृत्यु के क्लेशों से पूर्ण है, अतः जो परम सिद्धि प्राप्त करता है और परमलोक कृष्णलोक या गोलोक वृन्दावन को प्राप्त होता है

यदि ब्रह्मलोक में वह कृष्णभावनामृत का अनुशीलन नहीं करता, तो उसे पृथ्वी पर फिर से लौटना पड़ता है | जो उच्चतर लोकों में कृष्णभावनामृत में प्रगति करते हैं, वे क्रमशः और ऊपर जाते रहते हैं और प्रलय के समय वे नित्य परमधाम को भेज दिये जाते हैं | 

ब्रह्मा के ये १०० वर्ष गणना के अनुसार पृथ्वी के ३१,१०,४०,००,००,००,००० वर्ष के तुल्य हैं | इन गणनाओं से ब्रह्मा की आयु अत्यन्त विचित्र तथा न समाप्त होने वाली लगती है, किन्तु नित्यता की दृष्टि से यह बिजली की चमक जैसी अल्प है | कारणार्णव में असंख्य ब्रह्मा अटलांटिक सागर में पानी के बुलबुलों के समान प्रकट होते और लोप होते रहते हैं | 

बुद्धिमान व्यक्ति कृष्णभावनामृत स्वीकार करते हैं, वे इस मनुष्य जीवन का उपयोग भगवान् की भक्ति करने में तथा हरे कृष्ण मन्त्र का कीर्तन में विताते हैं | इस प्रकार वे इस जीवन में कृष्णलोक को प्राप्त होते हैं और वहाँ पर पुनर्जन्म के चक्कर से मुक्त होकर सतत आनन्द का अनुभव करते हैं |

जिन्हें कल्पतरु कहा जाता है, जो इच्छा होने पर किसी भी तरह का खाद्य पदार्थ प्रदान करने वाले हैं | वहाँ गौएँ भी हैं, जिन्हें सुरभि गौएँ कहा जाता है और वे अनन्त दुग्ध देने वाली हैं | इस धाम में भगवान् की सेवा के लिए लाखों लक्ष्मियाँ हैं | वे आदि भगवान् गोविन्द तथा समस्त कारणों के करण कहलाते हैं | भगवान् वंशी बजाते रहते हैं (वेणु क्वणन्तम्) | उनका दिव्य स्वरूप लोकों में सर्वाधिक आकर्षक है, उनके नेत्र कमलदलों के समान हैं और उनका शरीर मेघों के वर्ण का है | वे इतने रूपवान हैं कि उनका सौन्दर्य हजारों कामदेवों को मात करता है | वे पीत वस्त्र धारण करते हैं, उनके गले में माला रहती है और केशों में मोरपंख लगे रहते हैं | भगवद्गीता में भगवान् कृष्ण अपने निजी धाम, गोलोक वृन्दावन का संकेत मात्र करते हैं, जो आध्यात्मिक जगत् में सर्वश्रेष्ठ लोक है |

कृष्ण के परमधाम में या असंख्य वैकुण्ठ लोकों में भक्ति के द्वारा ही प्रवेश सम्भव है, जैसा कि भक्त्या शब्द द्वारा सूचित होता है | किसी अन्य विधि से परमधाम की प्राप्ति सम्भव नहीं है | वेदों में (गोपाल-तापनी उपनिषद् ३.२) भी परमधाम तथा भगवान् का वर्णन मिलता है | एको वशी सर्वगः कृष्णः | उस धाम में केवल एक भगवान् रहता है, जिसका नाम कृष्ण है | वह अत्यन्त दयालु विग्रह है और एक रूप में स्थित होकर भी वह अपने को लाखों स्वांशों में विस्तृत करता रहता है | 

कृष्णभावनामृत में शुद्धभक्त के लिए लौटने का कोई भय नहीं रहता, चाहे वह शुभ मुहूर्त में शरीर त्याग करे या अशुभ क्षण में, चाहे अकस्मात् शरीर त्याग करे या स्वेच्छापूर्वक |

भागवत के तृतीय स्कंध में कपिल मुनि उल्लेख करते हैं कि जो लोग कर्मकाण्ड तथा यज्ञकाण्ड में निपुण हैं, वे मृत्यु होने पर चन्द्रलोक को प्राप्त करते हैं | ये महान आत्माएँ चन्द्रमा पर लगभग १० हजार वर्षों तक (देवों की गणना से) रहती हैं और सोमरस का पान करते हुए जीवन का आनन्द भोगती हैं |

जो अनादि काल से सकाम कर्मों तथा दार्शनिक चिन्तक रहे हैं वे निरन्तर आवगमन करते रहे हैं | वस्तुतः उन्हें परममोक्ष प्राप्त नहीं होता, क्योंकि वे कृष्ण की शरण में नहीं जाते |

भगवद्भक्त को इसकी चिन्ता नहीं होनी चाहिए कि वह स्वेच्छा से मरेगा या दैववशात् | भक्त को कृष्णभावनामृत में दृढ़तापूर्वक स्थित रहकर हरे कृष्ण का जप करना चाहिए |

जिसे भगवद्गीता में तनिक भी श्रद्धा नहीं है, उसे किसी भक्त से भगवद्गीता समझनी चाहिए, क्योंकि चौथे अध्याय के प्रारम्भ में ही कहा गया है कि केवल भक्तगण ही गीता को समझ सकते हैं

बृज रस मदिरा रसोपासन 1

आज  के  विचार 1 https://www.youtube.com/@brajrasmadira ( चलहुँ चलहुँ  चलिये निज देश....) !! रसोपासना - भाग 1 !!  ***************************...