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*संत की संगति का फल*
एक बार एक बहुत प्रसिद्ध चोर किसी के बंगले पर चोरी करने गया. उस दिन वहाँ पर एक संत भागवत् कथा कर रहे थे. जब चोर वहाँ पहुँचा तो प्रसंग चल रहा था कि माँ यशोदा श्री कृष्ण और बलराम को हर रोज़ गहने पहनाती और वह दोनों भोजन करने के बाद गाय चराने जाते.
संत भाव विभोर होकर श्री कृष्ण की मणि और गहनों का वर्णन कर रहे थे कि वह बहुमुल्य है, अनमोल है. चोर का ध्यान चोरी से हट गया और वह सोचने लगा कि इस संत से उन दिनों भाईयों का पता पूछ लेता हूं कि दोनों भाई कौन से स्थान पर गाय चराने जाते हैं ? मैं उनके गहने छीन लूंगा और मालामाल हो जाऊँगा.
श्री कृष्ण की लीला देखिये उस चोर ने पहले कभी भी भक्ति भाव के प्रसंग सुने ही नहीं थे क्योंकि उसकी संगति ही चोर उचक्को ं की थी. वह तो बस चोरी - छीना झपटी, और मार काट ही जानता था.
अब वह संत की प्रतीक्षा करने लगा कि कब वह इस सुनसान रास्ते से गुजरे और मैं दोनों बच्चों का पता पूछ सकू. संत को आते देख चोर ने उन्हें चाकू दिखाया और कहने लगा कि उन दोनों बच्चों का पता बता जिन के बारे में तुम बंगले में बता रहे थे कि उनके गहनों का मुल्य तो अनमोल है.
संत ने समझाना चाहा कि भाई मैं तो भागवत् कथा का प्रसंग सुना रहा था. लेकिन संत को लगा कि यह ज्ञान की बातें इस मूढ को समझ नहीं आएगी क्यों कि उसके दिमाग में गहनों का ही ख्याल घूम रहा था. ऊपर से संत को चाकू का भी डर सता रहा था.
संत ने जान बचाने के लिए कहा कि वृंदावन चले जाओ वहाँ दोनों भाई सुबह गाय चराने आते हैं .वहां तुम उनसे मिल लेना. चोर जाते - जाते संत से कह गया कि मैं गहनों में से आपको आपका हिस्सा दे दूंगा.
अब जैसे - तैसे वृन्दावन पहुँचा. उस समय शाम होने वाली थी. उसने लोगों से पूछा कृष्ण बलराम गाय कहाँ चराते है. लोगों ने भी सरल भाव से वह स्थान बता दिया .
श्री कृष्ण की माया देखिये पूरी रात उसे नींद नहीं आई. रात भर भूख प्यास की कोई सुध नहीं. मन में एक ही उत्सुकता की दोनों के अनमोल गहने लेने है . पूरी रात कभी पेड़ पर चढ़े कभी उतरे, कभी रास्ता देखे कि दोनों भाई कब आएगे. अनजाने में ही सही मन में कृष्ण कृष्ण की धुन चल रही है कब आओगे कब आओगे.
सुबह हुई तो उत्सुकता ओर बढ़ गई. फिर उसे एक आलोकिक प्रकाश दिखाई दिया और दो बालक दिखाई दिए. वह एक टक दोनों को निहारने लगा. सोचने लगा कि ऐसा मनमोहक रुप आज से पहले कभी नहीं देखा.
तभी उसे स्मरण आया कि मुझे तो इनके गहने लेने है और उसमें से संत जी को भी हिस्सा देना है. वह जैसे ही श्री कृष्ण और बलराम को धमाका कर गहने छीनने लगा. प्रभु का वह स्पर्श उसे बहुत ही आलोकिक लगा. प्रभु ने अपनी इच्छा से उसे गहने ले जाने दिये.
फिर से वह उन संत जी की प्रतीक्षा करने लगा. संत जी के आते ही कहने लगा कि अपना हिस्सा ले ले. मैं दोनों बालकों के गहने ले आया हूँ. संत जी हैरान परेशान अरे !भाई तू किन बालकों के आभूषण ले आया है ? भूल गए क्या? कृष्ण और बलराम का पता आप ने ही तो बताया था. मैंने बालकों से उनका नाम पूछा था. उन्होंने ने अपना नाम कृष्ण और बलराम ही बताया था.
संत जी कहने लगे कि मुझे भी उन बालकों से मिलना है. मुझे भी ले चलो . दोनों उस स्थान पर पहुँचे .चोर को दोनों दिखे संत जी को नहीं दिखे. चोर ने श्री कृष्ण और बलराम से कहा कि आप संत जी को क्यों नही दिख रहे? आप को उन्हें भी दिखना पड़ेगा नहीं तो वो मुझे झूठा कहेंगे. भक्त की जिद्द के कारण प्रभु ने संत जी को भी दर्शन दिए.
संत जी कहने लगे कि प्रभु मैं तो कई सालों से भागवत् कथा कर रहा हूँ. लेकिन आप ने मुझे कभी दर्शन नहीं दिए . जबकि चोर तो आपके नाम की महिमा और रूप के बारे में कुछ जानता भी नहीं था. फिर उसे दर्शन क्यों दिए? प्रभु ने कहा क्यों कि तुम ने मुझे कभी उस भाव से पुकारा ही नहीं.
प्रभु कहने लगे कि अनजाने में ही सही उसे संत के कहे हुए वचनों पर दृढ विश्वास था. चाहे वो मेरे बारे में कुछ नहीं जानता था लेकिन ईश्वर को पाने के लिए जो व्याकुलता होनी चाहिए. उस समय उस में वही थी. कभी पेड़ पर चढ़ता कभी उतरता और उसके मन में मेरे नाम की ही धुन चल रही थी. इस लिए मैं उस पर रीझ गया और उसके समीप आ गया. संत की संगति का यही तो परिणाम होता है.
अब चोर भी संत की संगति में श्री कृष्ण का परम भक्त बन गया क्योंकि अब वह श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त कर चुका था.
जय श्री कृष्णा.