Monday, September 20, 2021

Shri Radha Ashtami special knowledge...

*Radha Ashtami auspicious time*

 Radha Ashtami Tithi will start from 3:10 pm on 13th September, which will end at 1:9 pm on 14th September.

 *Radha Ashtami Significance*

 Like Janmashtami, Radha Ashtami has special significance.  It is said that fasting on Radha Ashtami destroys all sins.  On this day married women keep a fast for the happiness of children and for the attainment of unbroken good fortune.  According to mythology, Lord Krishna is automatically pleased by those who please Radha.  It is said that by observing the fast, Goddess Lakshmi comes to the house and wishes are fulfilled.

 *Worship method of Radha Ashtami fast*

 -Retire from bathing in the morning.
 After this, make a circle under the mandap and install a clay or copper urn in its central part.
 Keep a copper vessel on the Kalash.
 Now install a gold (if possible) idol of Radhaji decorated with clothes and ornaments on this pot.
 After that worship Radhaji with Shodashopachar.
 Keep in mind that the time of worship should be exactly midday.
 After worship, observe complete fasting or take one meal at a time.
 On the second day, according to the reverence, feed the married women and Brahmins and give them Dakshina.

 Like other fasts, on this day also, after getting up early in the morning before sunrise, after retiring from bathing activities, worship of Shri Radha ji should be done.  On this day, in Shri Radha-Krishna temple, one should praise Shri Radhaji with flag, wreath, clothes, flag, tornado and various types of sweets and fruits.

 Decorate the mandap in the temple with five colors, make a lotus instrument in the shape of a shedasha party, in the middle of that lotus, place the idol of Shri Radha-Krishna on the divine seat facing west.  Sing the praises of God with devotion, taking the material of worship according to your ability along with brothers and sisters.

 Spend time in haricharcha during the day and chanting the name at night.  Eat fruit once.  Light a lamp in the temple.
 
 *Benefits of Sriradhashtami fast*

 Shri Radha-Krishna whose presiding deity is there, they must observe Radhashtami fast because this fast is the best.  Shri Radhaji is omnipotent and opulent.  Lakshmiji always resides in the house of his devotees.  Those devotees who observe this fast, where all the wishes of those seekers are fulfilled, a person gets all the happiness.  On this day every wish asked from Radhaji is fulfilled.
 
 The person who remembers and chants the mantra in the name of Shri Radhaji becomes a charitable person.  Arthaarthi gets wealth, Moksharthi gets salvation.  The worship of Shri Krishna ji remains incomplete without the worship of Radhaji.

 *Mantras of Radha Rani*

 Tapta-Kanchan Gaurangi Shri Radhe Vrindavaneshwari
 Vrishabhanu Sute Devi Pranamami Haripriya

 Om Sri Radhikayai Namah.
 Om Sri Radhikayai Vidmahe Gandharvikayai Vidhimahi Tanno Radha Prachodayat.
 Shri Radha Vijayate Namah, Shri RadhaKrishnaya Namah:

 Jaijay Shree Radhekrishna

Sunday, September 19, 2021

कथा कल की चिंता क्यों ? अद्भुत कथा

एक राजा की पुत्री के मन में वैराग्य की भावनाएं थीं। जब राजकुमारी विवाह योग्य हुई तो राजा को उसके विवाह के लिए योग्य वर नहीं मिल पा रहा था।

राजा ने पुत्री की भावनाओं को समझते हुए बहुत सोच-विचार करके उसका विवाह एक गरीब संन्यासी से करवा दिया।

राजा ने सोचा कि एक संन्यासी ही राजकुमारी की भावनाओं की कद्र कर सकता है।

विवाह के बाद राजकुमारी खुशी-खुशी संन्यासी की कुटिया में रहने आ गई।

कुटिया की सफाई करते समय राजकुमारी को एक बर्तन में दो सूखी रोटियां दिखाई दीं। उसने अपने संन्यासी पति से पूछा कि रोटियां यहां क्यों रखी हैं?

संन्यासी ने जवाब दिया कि ये रोटियां कल के लिए रखी हैं, अगर कल खाना नहीं मिला तो हम एक-एक रोटी खा लेंगे।

संन्यासी का ये जवाब सुनकर राजकुमारी हंस पड़ी। राजकुमारी ने कहा कि मेरे पिता ने मेरा विवाह आपके साथ इसलिए किया था, क्योंकि उन्हें ये लगता है कि आप भी मेरी ही तरह वैरागी हैं, आप तो  सिर्फ भक्ति करते हैं और कल की चिंता करते हैं।

सच्चा भक्त वही है जो कल की चिंता नहीं करता और भगवान पर पूरा भरोसा करता है।

अगले दिन की चिंता तो जानवर भी नहीं करते हैं, हम तो इंसान हैं। अगर भगवान चाहेगा तो हमें खाना मिल जाएगा और नहीं मिलेगा तो रातभर आनंद से प्रार्थना करेंगे।

ये बातें सुनकर संन्यासी की आंखें खुल गई। उसे समझ आ गया कि उसकी पत्नी ही असली संन्यासी है। 

उसने राजकुमारी से कहा कि आप तो राजा की बेटी हैं, राजमहल छोड़कर मेरी छोटी सी कुटिया में आई हैं, जबकि मैं तो पहले से ही एक फकीर हूं, फिर भी मुझे कल की चिंता सता रही थी। सिर्फ कहने से ही कोई संन्यासी नहीं होता, संन्यास को जीवन में उतारना पड़ता है। आपने मुझे वैराग्य का महत्व समझा दिया।

शिक्षा: अगर हम भगवान की भक्ति करते हैं तो विश्वास भी होना चाहिए कि भगवान हर समय हमारे साथ है।

उसको (भगवान्) हमारी चिंता हमसे ज्यादा रहती हैं।

कभी आप बहुत परेशान हो, कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा हो।

आप आँखे बंद कर के विश्वास के साथ पुकारे, सच मानिये 
थोड़ी देर में आप की समस्या का समाधान मिल जायेगा।

Friday, September 10, 2021

laddu maar holi katha बृज में लड्डू मार होली कैसे शुरू हुई

🙌🏼 आज श्री बरसाना धाम में लड्डू होली की सभी वैष्णव समाज को बधाई हो !!
आज श्री किशोरी जी की सखियां नन्दगाँव नन्दलाला को होली का निमन्त्रण देने जाती हैं जहां उनकी खूब आवभगत होती है। 

सखियों द्वारा होली का न्यौता देने के बाद आज शाम को नंदलाला स्वरुप पांडा बरसाना आता है। जिसके स्वागत में बरसाना आये श्रद्धालु व रसिक उस पांडे को लड्डुओं का भोग लगाते हैं।

वह नाचते हैं लड्डू खाते हैं और श्रद्धालुओं में लुटाते हैं और फिर कल नन्दलाला अपने सखाओं के साथ पाग पहनकर ढाल लेकर आएंगे और सीधे पहुचेंगे किशोरी जी के निज महल में वहां बरसाना के गोस्वामी समाज और नन्द गाँव के गोस्वामी समाज के द्वारा होली पद गायन होगा।

अष्टमी अर्थात आज के दिन नन्दगाँव से पाण्डे जी होरी का निमंत्रण लेकर आते हैं तो लड्डू होरी में यह पद गाया जाता है–

नन्दगाँव कौ पाँडे ब्रज बरसाने आयौ ।
भरि होरी के बीच सजन समध्याने धायौ ॥
पाँड़े जू के पायनि कों हँसि शीश नवायौ ।
अति उदार वृषभानु राय सन्मान करायौ ॥
पाँय धुवाय अन्हवाई प्रथम भोजन करवायौ ।
भानु भवन भई भीर फाग कौ खेल मचायौ ॥
समध्याने की गारी सुनत श्रवण सुख पायौ ।
धाई आई और सखी जिनि सोंधो नायौ ॥
शीशी सर ते ढोरी फुलेल अंग झलकायौ ।
हनुमान की प्रतिमा मानौ तेल चढायौ ॥
काजर सों मुख माढ़यौ वन्दन बिन्दु बनायौ ।
कारे कर सहि चुवत मनौं चपरा चपकायौ ॥
गज गामिनि गौछनि में तकि तुकमा लपटायौ ।
देह धरें मानों फागुन ब्रज में खेलन आयौ ॥
माथे तें मोहनी मठा कौ माट ढ़ुरायौ ।
मानों काचे दूध श्याम गिरवरहि न्हवायौ ॥
लियौ लुगाइनि घेरि नरें नाना के आयौ ।
तब श्री राधा राधा कहि अपनौ बोल सुनायौ ॥
चंचल चन्द्र मुखीनि चहुँ धां तें जू दबायौ ।
अहो भानु की कुँवरी शरण हौं तेरी आयौ ॥
कोमल बानी सुनत गरौ राधा भरि आयौ ।
बाबा जू कौ दगल लली जू लै पहिरायौ ॥
कीरति पाँय लागि लागि तातौ पय प्यायौ ।
मनवांछित निधि दीनी तन तें ताप नसायौ ॥
*जय श्रीराधे कृष्णा*
🙌🏼  🙌🏼

Thursday, September 2, 2021

अजा एकादशी कथा कथा पढ़ने सुनने व चिंतन मनन से समस्त पापो का अंत होता है

एकादशी कथा महात्म्य आज कृष्ण पक्ष की एकादसी  (अजा ) पर विशेष लेख 

 युठिस्ष्ठर ने पूछा : जनार्दन ! अब मैं यह सुनना चाहता हूँ कि भाद्रपद (गुजरात महाराष्ट्र के अनुसार श्रावण) मास के कृष्णपक्ष में कौन सी एकादशी होती है ? कृपया बताइये ।

 

भगवान श्रीकृष्ण बोले : राजन् ! एकचित्त होकर सुनो । भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की एकादशी का नाम ‘अजा’ है । वह सब पापों का नाश करनेवाली बतायी गयी है । भगवान ह्रषीकेश का पूजन करके जो इसका व्रत करता है उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं ।

 

पूर्वकाल में हरिश्चन्द्र नामक एक विख्यात चक्रवर्ती राजा हो गये हैं, जो समस्त भूमण्डल के स्वामी और सत्यप्रतिज्ञ थे । एक समय किसी कर्म का फलभोग प्राप्त होने पर उन्हें राज्य से भ्रष्ट होना पड़ा । राजा ने अपनी पत्नी और पुत्र को बेच दिया । फिर अपने को भी बेच दिया । पुण्यात्मा होते हुए भी उन्हें चाण्डाल की दासता करनी पड़ी । वे मुर्दों का कफन लिया करते थे । इतने पर भी नृपश्रेष्ठ हरिश्चन्द्र सत्य से विचलित नहीं हुए ।

 

इस प्रकार चाण्डाल की दासता करते हुए उनके अनेक वर्ष व्यतीत हो गये । इससे राजा को बड़ी चिन्ता हुई । वे अत्यन्त दु:खी होकर सोचने लगे: ‘क्या करुँ ? कहाँ जाऊँ? कैसे मेरा उद्धार होगा?’ इस प्रकार चिन्ता करते-करते वे शोक के समुद्र में डूब गये ।

 

राजा को शोकातुर जानकर महर्षि गौतम उनके पास आये । श्रेष्ठ ब्राह्मण को अपने पास आया हुआ देखकर नृपश्रेष्ठ ने उनके चरणों में प्रणाम किया और दोनों हाथ जोड़ गौतम के सामने खड़े होकर अपना सारा दु:खमय समाचार कह सुनाया ।

 

राजा की बात सुनकर महर्षि गौतम ने कहा :‘राजन् ! भादों के कृष्णपक्ष में अत्यन्त कल्याणमयी ‘अजा’ नाम की एकादशी आ रही है, जो पुण्य प्रदान करनेवाली है । इसका व्रत करो । इससे पाप का अन्त होगा । तुम्हारे भाग्य से आज के सातवें दिन एकादशी है । उस दिन उपवास करके रात में जागरण करना ।’ ऐसा कहकर महर्षि गौतम अन्तर्धान हो गये ।

 

मुनि की बात सुनकर राजा हरिश्चन्द्र ने उस उत्तम व्रत का अनुष्ठान किया । उस व्रत के प्रभाव से राजा सारे दु:खों से पार हो गये । उन्हें पत्नी पुन: प्राप्त हुई और पुत्र का जीवन मिल गया । आकाश में दुन्दुभियाँ बज उठीं । देवलोक से फूलों की वर्षा होने लगी ।

 

एकादशी के प्रभाव से राजा ने निष्कण्टक राज्य प्राप्त किया और अन्त में वे पुरजन तथा परिजनों के साथ स्वर्गलोक को प्राप्त हो गये ।

 

राजा युधिष्ठिर ! जो मनुष्य ऐसा व्रत करते हैं, वे सब पापों से मुक्त हो स्वर्गलोक में जाते हैं । इसके पढ़ने और सुनने से अश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता है ।

सखि नामावली