#श्रीराधारानी_द्वारा_श्यामसुंदर_के_आकर्षण_का_वर्णन 🙇🙇
राधारानी अपने भवन में ब्रजेन्द्र नंदन के वन गमन से लौटने की प्रतीक्षा कर रही थी
उनकी प्रबल उत्कंठा विशाखा सखी देख रही थी
अचानक राधारानी बोल पड़ी-
"विशाखे!तुम विस्मित हो न मुझे देखकर?
तो सुनो
श्याम सुंदर का आकर्षण मुझे तो क्या स्वयम श्याम को आकर्षित कर लेता है
कभी कुंज मन्दिर के किसी मणिमय स्तम्भ(खम्बे) में वो अपना प्रतिबिम्ब देख लें,तो स्वयम मोहित हो देखते रह जाते हैं
मैं अपनी क्या कहूँ।वे मेरी पंच इंद्रियों को ही आकर्षण कर वश में कर लेते हैं
【अब राधारानी एक एक इन्द्रिय का पृथक पृथक वर्णन करती है】
*नेत्रों को आकर्षित करता रूप*
राधारानी कहती हैं-
"हे सखी!वो नव जलधर की अपेक्षा भी अधिक कांतिमय और सुंदर हैं।
उनका पीताम्बर मानो नव जलधर से लिपटी सौदामिनी हो(बादल से लिपटी बिजली)
त्रिभंग ललित मधुराकृति है
शरतचन्द्र को निंदित करनेवाला मुखारविन्द,मस्तक पर म्यूरपुच्छ सुशोभित है
गले मे सुंदर नक्षत्र तुल्य तारामणि हार है
ऐसे मदनमोहन मेरी नेत्र तृष्णा को बढ़ा रहे हैं
*नासिका को आकर्षित करता श्यामसुन्दर का श्रीअंग सौरभ*
राधारानी कहती है-
"सखी!मृगमद से भी अधिक सुगन्धित उनका श्री अंग चराचर को आकर्षित कर लेता है
उनके कमल जैसे आठ अंगों से कर्पूरयुक्त कमल की सुगंध आती है
【श्याम सुंदर के 8 अंगों की तुलना कमल से की जाती हैं।ये अंग हैं चरणयुगल,करयुगल,नेत्रयुगल,नाभि,मुखारविन्द अष्ट कमल कहे गए हैं】
राधारानी आगे कहती है-
"उनका श्री अंग दिव्य चन्दन,अगरु आदि द्रव्यों से लेप किया हुआ है।
ऐसे मदनमोहन मेरे नासिका की उत्कंठा बढ़ा रहे हैं"
*कर्णों का आकर्षण*
राधारानी कहती है-
"जिनका कंठ स्वर मेघ गर्जन की भांति गम्भीर है,जिनके आभूषणों की ध्वनि कानों को सूखकर प्रतीत होती है,जिनके परिहासयुक्त वचन(ललित नायक) वरांगनाओं का तो क्या स्वयम लक्ष्मी का भी मन मोह लें,
वे मदन मोहन मेरे कानों की उत्कंठा बढ़ा रहे हैं"
*स्पर्श आकर्षण*
राधारानी कहती है-
"जिनका वक्षस्थल इंद्रनीलमणि के कपाट जैसा मनोहर है,जो तरुणियों के विरह ताप को शांत करता है,
स्पर्श करने पर उनका अंग चंद्रमा,हरिचंदन,नीलकमल तथा कपूर के समवेत शीतलता से भी अधिक शीतल करता है,
ऐसे मदन मोहन मेरे हाथों में स्पर्श की उत्कंठा बढ़ा रहे हैं
*रसना का अकर्षण*
राधारानी आगे वर्णन कर रही है-
"उनका अधरामृत अतुलनीय है।ब्रजगोपिकाएँ ये जानती हैं,तथा उसके आगे दूसरे किसी रस को वो गिनती ही नही।उनके चर्वित पान की बीरी का स्वाद अमृत को परास्त करता है,
ऐसे मदन मोहन मेरी जिह्वा की उत्कंठा बढ़ा रहे हैं"
वर्णन करते करते राधारानी विह्वला हो जाती है,वाणी कांपने लगती है
वो सखी से पूछती है-
"विशाखे!तुलसी आई क्यों नही?वो कृष्ण के आगमन का समाचार लाने गई थी न?ये प्रतीक्षा तो एक युग जैसी है...."
तभी तुलसी श्यामसुन्दर के वन से लौटने का समचार लाती है,परन्तु प्रेमविवश राधारानी अब उठकर खिड़की तक जा नहीं पाती.अत्यधिक प्रसन्नता ने सात्विक आवेश ला दिया है
विशाखाजी उन्हें हाथ पकड़कर ले जाती हुई कहती है-
"एकबार देख लो राधे ..."
जय जय श्री श्री राधेश्याम....💐🌹🌺
जय जय श्री श्यामा श्याम 🙏🏼🙇🏻♂🌹