*"सन्त चरणों का प्रसाद"*🙏🏻🌹
श्री राधावल्लभ मन्दिर के एक बहुत अच्छे सन्त के जीवन का प्रसंग है जिनका नाम श्री राधावल्लभ चरण दास था। राजस्थान के एक राजपुत क्षत्रिय व्यक्ति एक बार वृन्दावन आये और श्री राधावल्लभ के रूप में आसक्त हो गए और श्री वृन्दावन में ही निवास करने लगे। ये बहुत बलवान थे और राधावल्लभ मन्दिर का जो बड़ा घण्टा है उसको अपने हाथ में लेकर आरती के समय बजाते।
एक समय महात्मा जी सेवा के लिए पुष्प लाने यमुना जी के समीप गए थे तब एक मगर ने उनका पैर पकड़ लिया। मगर का बल जल में बहुत अधिक होता है परन्तु महात्मा प्रचण्ड बलवान थे। महात्मा ने कहा, हे प्रभु ! ये मगर हमको आपकी सेवा करने से रोक रहा है।
महात्मा जी बहुत बलवान थे, उन्होंने उस मगर को उठाया और कंधे पर रखकर वृन्दावन के गलियों, कुंजो से घुमाकर लाये और श्री राधावल्लभ जी के मन्दिर में ले आये। साधू सन्तो ने कहा, बाबा ये आफत कहाँ से लेकर आ गए। महात्मा जी ने स्नान किया, प्रसाद उस मगर के मुख में डाला, प्रभु का चरणामृत मुख में डाला और भगवान् के दर्शन कराये। इसके बाद महात्मा जी उस मगर को ले जाकर पुनः यमुना जी के किनारे छोड़ आये।
लौटने पर सन्तो ने पूछा, महाराज जी ! आपने उस मगरमछ को मन्दिर में लाकर चरणामृत और प्रसाद पवाया, दर्शन कराया, इसका कारण क्या है ? उस क्रुर पशु को आप यहाँ उठा कर किस कारण से लाये ?
महात्मा जी बोले, कुछ भी हो परन्तु उस मगर ने सन्त के चरण पकडे थे। भाव से न सही परन्तु सन्त चरण पकड़ने वाले पर कृपा कैसे न होती ? यदि हम उस मगर को मन्दिर न लाते तो प्रभु कहते की मगर ने सन्त के चरण पकडे परन्तु उसको क्या मिला ? मेरे राधावल्लभ जी की बदनामी होती कि राधावल्लभ जी के एक दास के चरण मगर ने पकडे और उसे कुछ न मिला। प्रभु को लज्जा लगती अतः हमने उस मगर पर कृपा की।
----------:::×:::----------
"जय जय श्री राधे"
********************************************
"श्रीजी की चरण सेवा" की सभी धार्मिक, आध्यात्मिक एवं धारावाहिक पोस्टों के लिये हमारे पेज से जुड़े रहें👇
F.B. श्रीजी मंजरीदास
Whatsaap करे 0091- 9711592529
भक्ति ग्रुप से जुड़े व भक्ति भाव का प्रसार करे